Wednesday, 14 February 2018

अजित सिंह के मुजफ्फरनगर दौरे के क्या हैं मायने

मुजफ्फरनगरः  चर्चा है कि रालोद के मुखिया अजित सिंह मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वे दो दिन के लिए मुजफ्फरनगर प्रवास पर थे। कहा जा रहा है कि वे यहां पर यह सुध लेने के लिए आए थे कि यहां से चुनाव लड़ा जाए या नहीं 2019 में? उनके दौरे को अलग-अलग संदर्भ में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी बहुत कुछ लिखा गया है।


अजित के दौरे पर सटीक कमेंट करती यह फेसबुक पोस्टः-
आसन्न संसदीय चुनाव में मुजफ्फरनगर से मैदान में उतरने की चर्चाओं के बीच रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह दो दिनी 'वेलेंटाइनी' प्रवास कर लौट गए। जैसा कि उन्होंने खुद कहा वह यहाँ ना तो कोई बडी जनसभा करने आए थे और ना ही कोई पंचायत। रालोद दफ्तर का उद्घाटन किया। पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं और खासतौर पर कुछ मुस्लिम प्रतिनिधियों से मिले। उन्होंने किसानों (जिन्हें पश्चिमी यूपी की राजनीतिक शब्दावली में जाट समझा जाता है) और मुसलमानों से 2013 के सांप्रदायिक दंगे को भुलाकर फिर से एकजुट होने का फार्मूला बताया।
चौधरी साहब ने जाटों से रोजाना मुसलमानों से हाथ मिलाने, एक-दूसरे के निकाह-शादी में शिरकत करने तथा मिलजुल कर ईद-होली मनाने की अपील की। जाहिर है ऐसा होने लगेगा तो जाट-मुसलमान की ताकत इतनी प्रभावी हो जाएगी कि बाकी 36 बिरादरियों की ओर मुंह ताकने की जरूरत ना होगी। शायद यही गुणा-भाग लगा कर बाकी के लिए उन्होंने कोई संदेश देना जरूरी नहीं समझा। चौधरी साहब ने सबसे कठोर चेतावनी भाजपा को दी और बाकी किसी दल का नाम तक नहीं लिया। विपक्षी दलों के गठबंधन के सवाल पर भी खामोश रहे। बस भाजपा पर बिफरे और ऐलान किया कि वह उसे दफन करने ही मुजफ्फरनगर आए हैं।
राजनीतिक नजरिए से विचार करें तो जाट-मुसलमान वोट बैंक एकजुट होने का भाजपा से भी अधिक नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। पश्चिमी यूपी में बुलंदशहर और बागपत में मामूली संख्या में यादव हैं। बाकी जिलों में यादव नगण्य हैं। मुजफ्फरनगर जिले में अकेला बिड्डाहेडी गांव यादवों का है, जहां एक जमाने में शोभाराम हुआ करते थे। ऐसे में मुसलमानों पर अजित सिंह का मोहिनी मंत्र चल गया तो सपा की दुकान में सौदा ही खत्म हो जाएगा। आज अखिलेश यादव को भी फीडबैक मिल चुका होगा। शायद तभी सपा सरकार में अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य रहे मुफ्ती जुल्फिकार ने फरमाया है -"हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी"।
- वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र दीक्षित की फेसबुक वॉल से साभार। 

अजित सिंह का मुजफ्फरनगर दौरा- मीडिया की नजर सेः- 










Tuesday, 6 February 2018

संजीव बालियान की रातों की नींद क्यों उड़ी ?

भाग- 1

मुजफ्फरनगरः
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट को लेकर 2019 के चुनाव से एक साल पहले ही जबर्दस्त उठापटक का दौर शुरू हो गया है। किसे टिकट मिलेगा या किसका कटेगा, इसे लेकर भारी अटकलों का दौर चल रहा है। वर्तमान सांसद संजीव बालियान का टिकट कटने की खबर बच्चे-बच्चे की जुबान पर पहले से ही है। वैसे भी मुजफ्फरनगर का इतिहास रहा है कि जो भी जाट नेता यहां से जीतकर पहली ही बार में मंत्री बन गया उसका ग्राफ नीचे आने में देर नहीं लगी। भाजपा के नेता सुधीर बालियान, बसपा के योगराज सिंह इसके कुछ उदाहरण है। संजीव भी उसी लाइन पर चलते नजर आ रहे हैं।

हालांकि उनके समर्थक अभी भी मानते हैं कि संजीव को ही टिकट मिलेगा, लेकिन अनुराधा चौधरी के अचानक सक्रिय हो जाने से संजीव समर्थकों में बेचैनी है। इसके अलावा बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक ने भी संघ के माध्यम से टिकट मांगने की मुहीम शुरू कर दी है। हालांकि उमेश मलिक के बारे में कहा जाता है कि वे संजीव समर्थक हैं लेकिन यह भी सब जानते हैं कि वे लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।

संजीव को अगर टिकट मिल भी गया तो उनका चुनाव इस बार आसान नहीं होगा। सुनने में आ रहा है कि रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह इस बार मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने का इरादा जता रहे हैं। यहां जाट मतों की संख्या 2 लाख के आसपास है। जाटों का रुझान फिर से रालोद की ओर हो रहा है। इसके अलावा बसपा से इस बार राजपाल सैनी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अगर यह हुआ तो वे भाजपा के मतों में हीं सेंध मारेंगे। दलित, सैनी कट जाएंगे जो भाजपा का नुकसान है। 2014 में दलितों ने भी भाजपा को वोट दिया था। बसपा से कादिर राणा मैदान में थे इसलिए दलित वोट (मुजफ्फरनगर दंगे से उपजे माहौल की वजह से) बसपा से छिटककर भाजपा को चले गए थे और संजीव 4 लाख के बड़े अंतर से जीते थे। पर इस बार अजित और राजपाल लड़े तो जाट, सैनी व दलित मत कट जाएंगे। ऐसे में संजीव के पास कुछ बचेगा नहीं।


वैश्य, ठाकुर व अन्य हिंदू बिरादरियां संजीव से नाराज हैं। उनके बारे में राय बन रही है कि वे केवल जाटों से घिरे रहते हैं और उनके काम ही करते हैं। विकास कार्य भी जाट इलाकों में हो रहे हैं। फिलहाल तो संजीव बालियान के लिए मुश्किल ही मुश्किल नजर आ रही हैं।

(जारी)

अगली किश्त में पढ़ें-

संजीव बालियान की पोजिशन क्यों खराब हुई भाजपा के अंदर !