कैराना मुद्दा उठाकर बीजेपी को दिया है यूपी में सपा पर हमला बोलने का अवसर
लखनऊः कैराना प्रकरण में हाईलाइट होने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजर में चढ़ गए सांसद हुकुम सिंह को भी भाजपा यूपी में सीएम पद दे सकती है। प्रदेश में किसी प्रभावी चेहरे की तलाश हुकुम सिंह पर आकर भी खत्म हो सकती है। पार्टी हाईकमान से जुड़े सूत्रों के अनुसार, बहुत संभव है कि हुकुम सिंह को बाद में आगे बढ़ाया जाए। बहुत आसार तो इस बात के हैं कि चुनाव के समय किसी नाम का ऐलान ही नहीं किया जाए और बाद में हुकुम सिंह जैसे किसी वरिष्ठ नेता का नाम चला दिया जाए। हुकुम सिंह सेना के रिटायर्ड हैं और वकील भी रहे हैं। उनके इस मुद्दे ने भाजपा को यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा दिया है। इसके ईनाम में हुकुम को पार्टी का बहुमत आने की स्थिति में सीएम पद भी दिया जा सकता है।
कैराना से पलायन के मामले ने बीजेपी को यूपी मिशन 2017 के लिए प्रचार शुरू होने के समय वो माहौल दे दिया है जिसकी उसे दरकार थी। सब कुछ नियोजित तरीके से हुआ। सहारनपुर में पीएम मोदी की रैली आयोजित की गई और ठीक उसी समय भाजपा के कैराना सांसद हुकुम सिंह ने मामला उजागर कर दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी है। ये साफ हो चुका है कि कैराना से हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा अपराध से जुड़ा हुआ है लेकिन इसे अप्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक रूप देने के लिए और अखिलेश सरकार पर मारक हथियार की तरह प्रयोग करने के लिए अमित शाह की टीम ने इसे भली भांति नियोजित किया है। हुकुम सिंह वेस्ट यूपी के कद्दावर नेता माने जाते हैं। लगभग तीन दशक से हुुकुम सिंह विधानसभा सदस्य रहे और कभी कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एन डी तिवारी के करीबी रहे हैं। यूपी की अंतिम कांग्रेस सरकार के समय भी हुकुम सिंह विधायक थे। बाद में तिवारी ने अलग होकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई थी तो हुकुम सिंह उसमें चले गए थे। यूपी में जब कल्याण सिंह की दोबारा सरकार बनी तो उससे कुछ माह पहले हुकुम सिंह ने भाजपा में आने का फैसला किया और फिर कैराना विधानसभा सीट से विधायक बनकर मंत्री बन गए। उनके पास संसदीय कार्य व मनोरंजन कर विभाग जैसे अहम मंत्रालय भी रहे। जब तक भी यूपी में भाजपा की सरकार रही तब तक हुकुम सिंह का दबदबा भाजपा में बना रहा उन्हें सेंकेंड टू सीएम माना जाता रहा लेकिन बाद में मायावती व फिर अखिलेश सरकार के समय हुकुम सिंह विधायक तो बनते रहे लेकिन राजनीतिक रूप से उनका कद उतना बड़ा नहीं हो सका जितना कि वे चाहते थे। इसलिए उन्होंने पहले 2009 में और फिर 2014 में कैराना से ही लोकसभा का चुनाव लड़ा। पहले प्रयास में वे हार गए पर 2014 में जीतने में सफल रहे। केंद्र की राजनीति में आने के बाद से ही हुकुम सिंह दो साल से शिथिल चल रहे थे। यूपी चुनाव के लिए अमित शाह की टीम हमेशा ही ऐसे मुद्दों की तलाश में रहती है जो सीधे वोटर की भावनाओं को झकझोर दें। ऐसे में हुकुम सिंह ने उनके सामने ये मुद्दा रखा और पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अमित शाह को ये आइडिया एकदम पसंद आ गया।
हुकुम सिंह ने इस मुद्दे को एक महीने से भी अधिक समय पहले एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिये उठाया था। बाद में धीरे-धीरे मीडिया के माध्यम ये मुद्दा बड़ा बनता चला गया। वेस्ट यूपी से ही मोदी का चुनाव बिगुल फूंकना भी एक सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा है। कैराना लोकसभा सीट में आने वाली दो विधानसभा सीटें सहारनपुर जिले का हिस्सा हैं। जबकि कैराना जिस शामली जिले का हिस्सा है उसकी सीमाएं सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत व मेरठ जिलों से मिलती हुई हैं। ये वही इलाका है जिसमें 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के समय सबसे ज्यादा घटनाएं हुई थीं। इसलिए पीएम की रैली सहारनपुर में रखी गई और कैराना से पलायन के मुद्दे को तूल दी गई। इस मुद्दे ने पूरे इलाके में तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। कैराना से लगने वाले मुजफ्फरनगर जिले के विधानसभा क्षेत्र बुढ़ाना से सपा विधायक नवाजिश आलम ने इस बार अपना क्षेत्र बदलने की मांग की है और मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विस सीट से टिकट मांगा है। नवाजिश आलम उन्हीं असंतुष्ट विधायकों में से एक हैं जिन्हें हाल ही में राज्यसभा चुनाव में क्रास वोटिंग के आरोप में सपा ने निलंबित किया है। इस इलाके में सपा ने ज्यादातर प्रत्याशियों का ऐलान किया हुआ है लेकिन जहां भी बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिया है वहीं सपा प्रत्याशियों की हालत खराब है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कैराना प्रकरण ने चुनाव को पूरी तरह से भाजपा-बसपा बनाम सपा बना दिया है। ऐसे में अखिलेश यादव की परेशानी और अमित शाह के हौसले बढ़ जाना स्वाभाविक ही है।
हुकुम सिंह जिस कैराना क्षेत्र में राजनीति करते हैं वहां उनकी प्रतिद्वंद्विता मुस्लिम गुर्जर नेता मरहूम मुनव्वर हसन से रही। हुकुम सिंह को एक बार मुनव्वर हसन के हाथों विधानसभा चुनाव में हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन बाद में मुनव्वर हसन भी मुलायम की पार्टी से राज्यसभा व फिर लोकसभा सांसद बन गए और इस तरह से हुकुम सिंह को विधायक के तौर पर जीतते रहने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। 2009 में जब हुकुम सिंह ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा तो उन्हें मुनव्वर हसन की बेवा तबस्सुम के हाथों हार का सामना करना पड़ा और उनकी केंद्र में जाने की मंशा पूरी नहीं हो सकी। उन्हें फिर विधानसभा का ही चुनाव लडऩा पड़ा। इस तरह से हसन परिवार लगातार उनका राजनीतिक दुश्मन बना रहा। मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण वहां प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सभी घटनाएं हसन परिवार के ईर्द गिर्द ही घूमती रही हैं। इस तरह से हुकुम सिंह एक तीर से दो शिकार करने में सफल रहे हैं। यहां ये भी जान लेना जरूरी है कि जैसे ही हुकुम सिंह केंद्र की राजनीति में आए वैसे ही मुनव्वर हसन के बेटे नाहिद हसन उपचुनाव जीतकर कैराना के सपा विधायक बन गए। पिछले दिनों नाहिद हसन एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के रिपोर्टर को बंधक बना लेने के मामले में सुर्खियों में आए थे।
लखनऊः कैराना प्रकरण में हाईलाइट होने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजर में चढ़ गए सांसद हुकुम सिंह को भी भाजपा यूपी में सीएम पद दे सकती है। प्रदेश में किसी प्रभावी चेहरे की तलाश हुकुम सिंह पर आकर भी खत्म हो सकती है। पार्टी हाईकमान से जुड़े सूत्रों के अनुसार, बहुत संभव है कि हुकुम सिंह को बाद में आगे बढ़ाया जाए। बहुत आसार तो इस बात के हैं कि चुनाव के समय किसी नाम का ऐलान ही नहीं किया जाए और बाद में हुकुम सिंह जैसे किसी वरिष्ठ नेता का नाम चला दिया जाए। हुकुम सिंह सेना के रिटायर्ड हैं और वकील भी रहे हैं। उनके इस मुद्दे ने भाजपा को यूपी में अखिलेश सरकार के खिलाफ बड़ा मुद्दा दिया है। इसके ईनाम में हुकुम को पार्टी का बहुमत आने की स्थिति में सीएम पद भी दिया जा सकता है।
कैराना से पलायन के मामले ने बीजेपी को यूपी मिशन 2017 के लिए प्रचार शुरू होने के समय वो माहौल दे दिया है जिसकी उसे दरकार थी। सब कुछ नियोजित तरीके से हुआ। सहारनपुर में पीएम मोदी की रैली आयोजित की गई और ठीक उसी समय भाजपा के कैराना सांसद हुकुम सिंह ने मामला उजागर कर दिया। रही सही कसर मीडिया ने पूरी कर दी है। ये साफ हो चुका है कि कैराना से हिंदू परिवारों के पलायन का मुद्दा अपराध से जुड़ा हुआ है लेकिन इसे अप्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक रूप देने के लिए और अखिलेश सरकार पर मारक हथियार की तरह प्रयोग करने के लिए अमित शाह की टीम ने इसे भली भांति नियोजित किया है। हुकुम सिंह वेस्ट यूपी के कद्दावर नेता माने जाते हैं। लगभग तीन दशक से हुुकुम सिंह विधानसभा सदस्य रहे और कभी कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एन डी तिवारी के करीबी रहे हैं। यूपी की अंतिम कांग्रेस सरकार के समय भी हुकुम सिंह विधायक थे। बाद में तिवारी ने अलग होकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई थी तो हुकुम सिंह उसमें चले गए थे। यूपी में जब कल्याण सिंह की दोबारा सरकार बनी तो उससे कुछ माह पहले हुकुम सिंह ने भाजपा में आने का फैसला किया और फिर कैराना विधानसभा सीट से विधायक बनकर मंत्री बन गए। उनके पास संसदीय कार्य व मनोरंजन कर विभाग जैसे अहम मंत्रालय भी रहे। जब तक भी यूपी में भाजपा की सरकार रही तब तक हुकुम सिंह का दबदबा भाजपा में बना रहा उन्हें सेंकेंड टू सीएम माना जाता रहा लेकिन बाद में मायावती व फिर अखिलेश सरकार के समय हुकुम सिंह विधायक तो बनते रहे लेकिन राजनीतिक रूप से उनका कद उतना बड़ा नहीं हो सका जितना कि वे चाहते थे। इसलिए उन्होंने पहले 2009 में और फिर 2014 में कैराना से ही लोकसभा का चुनाव लड़ा। पहले प्रयास में वे हार गए पर 2014 में जीतने में सफल रहे। केंद्र की राजनीति में आने के बाद से ही हुकुम सिंह दो साल से शिथिल चल रहे थे। यूपी चुनाव के लिए अमित शाह की टीम हमेशा ही ऐसे मुद्दों की तलाश में रहती है जो सीधे वोटर की भावनाओं को झकझोर दें। ऐसे में हुकुम सिंह ने उनके सामने ये मुद्दा रखा और पार्टी के सूत्र बताते हैं कि अमित शाह को ये आइडिया एकदम पसंद आ गया।
हुकुम सिंह ने इस मुद्दे को एक महीने से भी अधिक समय पहले एक प्रेस कांफ्रेंस के जरिये उठाया था। बाद में धीरे-धीरे मीडिया के माध्यम ये मुद्दा बड़ा बनता चला गया। वेस्ट यूपी से ही मोदी का चुनाव बिगुल फूंकना भी एक सोची समझी रणनीति का ही हिस्सा है। कैराना लोकसभा सीट में आने वाली दो विधानसभा सीटें सहारनपुर जिले का हिस्सा हैं। जबकि कैराना जिस शामली जिले का हिस्सा है उसकी सीमाएं सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बागपत व मेरठ जिलों से मिलती हुई हैं। ये वही इलाका है जिसमें 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के समय सबसे ज्यादा घटनाएं हुई थीं। इसलिए पीएम की रैली सहारनपुर में रखी गई और कैराना से पलायन के मुद्दे को तूल दी गई। इस मुद्दे ने पूरे इलाके में तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। कैराना से लगने वाले मुजफ्फरनगर जिले के विधानसभा क्षेत्र बुढ़ाना से सपा विधायक नवाजिश आलम ने इस बार अपना क्षेत्र बदलने की मांग की है और मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर विस सीट से टिकट मांगा है। नवाजिश आलम उन्हीं असंतुष्ट विधायकों में से एक हैं जिन्हें हाल ही में राज्यसभा चुनाव में क्रास वोटिंग के आरोप में सपा ने निलंबित किया है। इस इलाके में सपा ने ज्यादातर प्रत्याशियों का ऐलान किया हुआ है लेकिन जहां भी बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार दिया है वहीं सपा प्रत्याशियों की हालत खराब है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कैराना प्रकरण ने चुनाव को पूरी तरह से भाजपा-बसपा बनाम सपा बना दिया है। ऐसे में अखिलेश यादव की परेशानी और अमित शाह के हौसले बढ़ जाना स्वाभाविक ही है।
हुकुम सिंह जिस कैराना क्षेत्र में राजनीति करते हैं वहां उनकी प्रतिद्वंद्विता मुस्लिम गुर्जर नेता मरहूम मुनव्वर हसन से रही। हुकुम सिंह को एक बार मुनव्वर हसन के हाथों विधानसभा चुनाव में हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन बाद में मुनव्वर हसन भी मुलायम की पार्टी से राज्यसभा व फिर लोकसभा सांसद बन गए और इस तरह से हुकुम सिंह को विधायक के तौर पर जीतते रहने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। 2009 में जब हुकुम सिंह ने पहला लोकसभा चुनाव लड़ा तो उन्हें मुनव्वर हसन की बेवा तबस्सुम के हाथों हार का सामना करना पड़ा और उनकी केंद्र में जाने की मंशा पूरी नहीं हो सकी। उन्हें फिर विधानसभा का ही चुनाव लडऩा पड़ा। इस तरह से हसन परिवार लगातार उनका राजनीतिक दुश्मन बना रहा। मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण वहां प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सभी घटनाएं हसन परिवार के ईर्द गिर्द ही घूमती रही हैं। इस तरह से हुकुम सिंह एक तीर से दो शिकार करने में सफल रहे हैं। यहां ये भी जान लेना जरूरी है कि जैसे ही हुकुम सिंह केंद्र की राजनीति में आए वैसे ही मुनव्वर हसन के बेटे नाहिद हसन उपचुनाव जीतकर कैराना के सपा विधायक बन गए। पिछले दिनों नाहिद हसन एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के रिपोर्टर को बंधक बना लेने के मामले में सुर्खियों में आए थे।
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