बेटियों के साथ हुकुम सिंह |
इस मुद्दे को भाजपा ने सांप्रदायिक रंग देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यहां जांच के लिए अपने वेस्ट यूपी के सांसदों व भाजपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल भाजपा ने यहां भेजा। सबने हुकुम सिंह के कैराना स्थिति फार्म हाउस पर ही बैठक की थी। हालांकि संकेत साफ थे कि कैराना के मुद्दे का भाजपा राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में लग गई है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि कैराना के मुद्दे से भाजपा कितना लाभ उठा पाती है लेकिन यहां ये समझना जरूरी है कि आखिर हुकुम सिंह ने यह मुद्दा उठाया क्यों था?
दरअसल हुकुम सिंह वेस्ट यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के दिग्गज राजनीतिज्ञ रहे हैं। सेना से रिटायर वे पेशे से वकील रहे हुकुम सिंह 70 के दशक से राजनीति में सक्रिय हैं और 1974 में पहली बार विधायक बन गए थे। उस समय कैराना (अब शामली जिले का हिस्सा) से कांग्रेस के सांसद अख्तर हसन हुआ करते थे। बाद में हसन परिवार से हुकुम सिंह की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। यह लड़ाई आज तक जारी है और तीन दशक से भी अधिक समय से हुकुम सिंह बनाम हसन परिवार ही यहां की राजनीति का केंद्र बिंदु बने हुए हैं। हुकुम सिंह अब वयोवृद्ध हो चुके हैं और हाल ही में ऐलान कर चुके हैं कि 2019 का लोकसभा चुनाव वह नहीं लडेंगे। पांच बेटियों के पिता हैं और उनमें से भी चार अमरीका में रहती हैं। ऐसे में उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत गाजियाबाद में रहने वाली बेटी मृगांका सिंह को सौंपने का फैसला किया। मृगांका कई पब्लिक स्कूल चलाती हैं और उनका 21 साल का बेटा भी है। इस बार मृगांका भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं और उनके सामने हैं स्व. अख्तर हसन के पोते व मरूहम सांसद मुनव्वर हसन के इकलौते बेटे नाहिद हसन।
तबस्सुम बेगम व उनके बेटे नाहिद हसन |
दरअसल भाजपा को मतों का धुव्रीकरण करने के लिए मौका देने के अलावा हुकुम सिंह हसन परिवार के वर्चस्व को भी तोडऩा चाहते हैं। हुकुम सिंह 90 के दशक में भाजपा में शामिल होने के बाद चार विधानसभा चुनाव कैराना से लगातार जीते लेकिन जैसे ही वे संसद गए तो फिर से हसन परिवार के पास कैराना विधानसभा सीट चली गई। ऐसे में हुकुम सिंह का इरादा है कि हसन परिवार को विधानसभा या लोकसभा में पहुंचने ही नहीं दिया जाए। 75 साल की उम्र पार चुके हुकुम सिंह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनकी बातों से साफ है कि अगला लोकसभा चुनाव भी मृगांका ही लड़ेंगी। देखना होगा कि मृगांका उनकी राजनीतिक विरासत संभालने लायक हैं भी या नहीं? उनकी पहली परीक्षा इन विधानसभा चुनावों में होने जा रही है।
1993: हुकुम सिंह लगातार दूसरा चुनाव मुनव्वर हसन से लगभग 8 हजार मतों से हारे।
1996: हुकुम सिंह लगातार तीन हार के बाद भाजपा में शामिल हुए और विधायक चुने गए। इस बार मुनव्वर उनके सामने नहीं थे क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ कर सांसद बन गए।
2002: हुकुम सिंह लगातार दूसरी बार भाजपा के टिकट पर विधायक बने और सपा प्रत्याशी राजेश्वर बंसल को हराया। बंसल (शामली के चेयरमैन) के लिए मुनव्वर हसन ने फील्डिंग की थी और हुकुम सिंह को हराने का प्रयास किया था।
2007: इस बार हुकुम सिंह को हराने के लिए मुनव्वर हसन ने अपने छोटे भाई अरशद हसन को रालोद के टिकट पर उतारा लेकिन वह 9 हजार मतों से हार गए।
2009: हुकुम सिंह ने कैराना के विधायक रहते हुए ही यहां से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उनके सामने थी मुनव्वर हसन की बेवा तबस्सुम बेगम। 2008 में आगरा से दिल्ली लौटते हुए मुनव्वर हसन की सड़क हादसे में मौत हो चुकी थी और मायावती ने उनकी पत्नी को टिकट दे दिया। हुकुम सिंह को हार का सामना करना ़पड़ा।
2012: हुकुम सिंह ने इस बार मुनव्वर हसन के दूसरे भाई अनवर हसन (बसपा) को 20 हजार से भी ज्यादा मतों के अंतर से हराया और लगातार चौथी जीत हासिल की। इसी चुनाव के समय हसन परिवार में अंदरूनी मतभेद हो गए और मुनव्वर की बेवा तबस्सुम ने अपने बेटे नाहिद हसन को राजनीति में उतारने का फैसला कर लिया।
2014: हुकुम सिंह दूसरे प्रयास में लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे। उन्होंने नाहिद हसन को हराया। हुकुम सिंह के संसद चले जाने के बाद कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो नाहिद हसन सपा विधायक बनने में सफल रहे। उन्होंने हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान को एक हजार के मामूली अंतर से हराया।
2017: इस बार मरहूम मुनव्वर हसन के बेटे वे सिङ्क्षटग विधायक नाहिद हसन को टक्कर देने के लिए हुकुम सिंह ने अपनी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिलवाया है।
हुकुम सिंह: विधानसभा में
1974 कांग्रेस जीते
1977 कांग्रेस हारे
1980 कांग्रेस जीते
1985 कांग्रेस जीते
1989 कांग्रेस हारे
1991 कांग्रेस हारे
1993 कांग्रेस हारे
1996 भाजपा जीते
2002 भाजपा जीते
2007 भाजपा जीते
2014 सांसद बने
हुकुम सिंह बनाम मुनव्वर हसन परिवार
1991: पहली बार 27 साल के मुनव्वर हसन (जनता दल) ने हुकुम सिंह को 17 हजार मतों से पराजित किया।1993: हुकुम सिंह लगातार दूसरा चुनाव मुनव्वर हसन से लगभग 8 हजार मतों से हारे।
1996: हुकुम सिंह लगातार तीन हार के बाद भाजपा में शामिल हुए और विधायक चुने गए। इस बार मुनव्वर उनके सामने नहीं थे क्योंकि वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ कर सांसद बन गए।
2002: हुकुम सिंह लगातार दूसरी बार भाजपा के टिकट पर विधायक बने और सपा प्रत्याशी राजेश्वर बंसल को हराया। बंसल (शामली के चेयरमैन) के लिए मुनव्वर हसन ने फील्डिंग की थी और हुकुम सिंह को हराने का प्रयास किया था।
2007: इस बार हुकुम सिंह को हराने के लिए मुनव्वर हसन ने अपने छोटे भाई अरशद हसन को रालोद के टिकट पर उतारा लेकिन वह 9 हजार मतों से हार गए।
2009: हुकुम सिंह ने कैराना के विधायक रहते हुए ही यहां से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उनके सामने थी मुनव्वर हसन की बेवा तबस्सुम बेगम। 2008 में आगरा से दिल्ली लौटते हुए मुनव्वर हसन की सड़क हादसे में मौत हो चुकी थी और मायावती ने उनकी पत्नी को टिकट दे दिया। हुकुम सिंह को हार का सामना करना ़पड़ा।
2012: हुकुम सिंह ने इस बार मुनव्वर हसन के दूसरे भाई अनवर हसन (बसपा) को 20 हजार से भी ज्यादा मतों के अंतर से हराया और लगातार चौथी जीत हासिल की। इसी चुनाव के समय हसन परिवार में अंदरूनी मतभेद हो गए और मुनव्वर की बेवा तबस्सुम ने अपने बेटे नाहिद हसन को राजनीति में उतारने का फैसला कर लिया।
2014: हुकुम सिंह दूसरे प्रयास में लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रहे। उन्होंने नाहिद हसन को हराया। हुकुम सिंह के संसद चले जाने के बाद कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो नाहिद हसन सपा विधायक बनने में सफल रहे। उन्होंने हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान को एक हजार के मामूली अंतर से हराया।
2017: इस बार मरहूम मुनव्वर हसन के बेटे वे सिङ्क्षटग विधायक नाहिद हसन को टक्कर देने के लिए हुकुम सिंह ने अपनी बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिलवाया है।
हुकुम सिंह: विधानसभा में
1974 कांग्रेस जीते
1977 कांग्रेस हारे
1980 कांग्रेस जीते
1985 कांग्रेस जीते
1989 कांग्रेस हारे
1991 कांग्रेस हारे
1993 कांग्रेस हारे
1996 भाजपा जीते
2002 भाजपा जीते
2007 भाजपा जीते
2014 सांसद बने
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