मायावती की टीम ने 2017 के लिए तैयारी शुरू की
नई दिल्ली: खुद को यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार का सबसे मजबूत विकल्प मान रही मायावती ने 2017 के चुनाव के लिए तैयारी शुरू कर दी है। मायावती ने पूरे प्रदेश में पार्टी के नेटवर्क का जाल उसी तरह से बिछाना शुरू कर दिया है जिस तरह से वे पहले से बिछाती आई हैं। भाईचारा कमेटियों का गठन करके राज्य के 133879 पोलिंग बूथों पर अपने कार्यकर्ताओं को तैनात करने का सिलसिला तेज कर दिया है।
वेस्ट यूपी के प्रमुख बसपा नेता मुनकाद अली ने बताया कि बसपा समाज के सभी वर्गों से लोगों को जोड़ रही है। चाहे वे मुस्लिम हों या दलित या फिर पिछड़े। ऐसा नहीं है कि इस तरह की कमेटियों को पहली बार बनाया गया है। इससे पहले 2009 के आम चुनाव के समय भी मायावती ने ये फारमूला अपनाया था लेकिन जब पार्टी केवल 21 सीटें ही जीत पाई तो उन्होंने सभी को भंग कर दिया था। फिर आए 2012 के विधानसभा चुनाव। उसके समय फिर से इन कमेटियों को सक्रिय किया गया। हालांकि 403 विस सीटों में से मायावती की पार्टी केवल 80 ही जीत पाई और सत्ता से बाहर हो गई। सपा ने 224 सीटें जीतकर सरकार बनाई। अब 2017 के विस चुनाव से पहले भी मायावती ने ये ही राह पकड़ ली है। वैसे मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की चर्चा पहले भी होती रही है। 2007 में अगड़ों को बहुतायत में टिकट देकर मायावती ने दलित वोट बैंक के दम पर सत्ता हासिल की थी। लखनऊ विवि के पॉलिटिकल साइंस के पूर्व प्रोफेसर रमेश दीक्षित कहते हैं कि कांशीराम के आदर्शों को लेकर ही पार्टी चल रही है। कांशीराम का नारा हुआ करता था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी। बसपा उसी लाइन पर चल रही है। दलित वोटर बसपा की ताकत रहे हैं और पार्टी उसी को मजबूत करना चाहती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के दलित वोट भारी संख्या में भाजपा की ओर चले गए थे। मायावती को चिंता है कि कहीं इस बार विस चुनाव में भी ऐसा ही न हो जाए। फिलहाल पार्टी की यह रणनीति 2017 के चुनाव तक चलने के आसार हैं।
मुनकाद अली कहते हैं कि सोशल मीडिया को भी हम अपने अभियान का हिस्सा बनाने पर सोच सकते हैं हालांकि अभी इस पर विचार नहीं किया गया है। वैसे बसपा के समर्थक अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं। हम केवल पार्टी के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। अली कहते हैं कि सोशल मीडिया को लेकर पार्टी में ज्यादा फोकस नहीं है क्योंकि विधानसभा चुनाव में ये ज्यादा कारगर साबित नहीं होता है। वैसे बसपा की देखा-देखी समाजवादी पार्टी ने भी जातीय कार्ड चलने की तैयारी कर ली है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शिगूफा छेड़ दिया है। बसपा का कहना है कि ये राजनीतिक एजेंडा है और अगर इसे बढ़ाया जाना है तो फिर एससी कोटे को भी बढ़ाना होगा।
वेस्ट यूपी के प्रमुख बसपा नेता मुनकाद अली ने बताया कि बसपा समाज के सभी वर्गों से लोगों को जोड़ रही है। चाहे वे मुस्लिम हों या दलित या फिर पिछड़े। ऐसा नहीं है कि इस तरह की कमेटियों को पहली बार बनाया गया है। इससे पहले 2009 के आम चुनाव के समय भी मायावती ने ये फारमूला अपनाया था लेकिन जब पार्टी केवल 21 सीटें ही जीत पाई तो उन्होंने सभी को भंग कर दिया था। फिर आए 2012 के विधानसभा चुनाव। उसके समय फिर से इन कमेटियों को सक्रिय किया गया। हालांकि 403 विस सीटों में से मायावती की पार्टी केवल 80 ही जीत पाई और सत्ता से बाहर हो गई। सपा ने 224 सीटें जीतकर सरकार बनाई। अब 2017 के विस चुनाव से पहले भी मायावती ने ये ही राह पकड़ ली है। वैसे मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की चर्चा पहले भी होती रही है। 2007 में अगड़ों को बहुतायत में टिकट देकर मायावती ने दलित वोट बैंक के दम पर सत्ता हासिल की थी। लखनऊ विवि के पॉलिटिकल साइंस के पूर्व प्रोफेसर रमेश दीक्षित कहते हैं कि कांशीराम के आदर्शों को लेकर ही पार्टी चल रही है। कांशीराम का नारा हुआ करता था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी। बसपा उसी लाइन पर चल रही है। दलित वोटर बसपा की ताकत रहे हैं और पार्टी उसी को मजबूत करना चाहती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा के दलित वोट भारी संख्या में भाजपा की ओर चले गए थे। मायावती को चिंता है कि कहीं इस बार विस चुनाव में भी ऐसा ही न हो जाए। फिलहाल पार्टी की यह रणनीति 2017 के चुनाव तक चलने के आसार हैं।
मुनकाद अली कहते हैं कि सोशल मीडिया को भी हम अपने अभियान का हिस्सा बनाने पर सोच सकते हैं हालांकि अभी इस पर विचार नहीं किया गया है। वैसे बसपा के समर्थक अपने-अपने तरीके से सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहे हैं। हम केवल पार्टी के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। अली कहते हैं कि सोशल मीडिया को लेकर पार्टी में ज्यादा फोकस नहीं है क्योंकि विधानसभा चुनाव में ये ज्यादा कारगर साबित नहीं होता है। वैसे बसपा की देखा-देखी समाजवादी पार्टी ने भी जातीय कार्ड चलने की तैयारी कर ली है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शिगूफा छेड़ दिया है। बसपा का कहना है कि ये राजनीतिक एजेंडा है और अगर इसे बढ़ाया जाना है तो फिर एससी कोटे को भी बढ़ाना होगा।
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