Tuesday, 7 July 2015

राजनीतिक दलों को आरटीआईं के दायरे में लाया जाए

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लाने के लिए सार्वजनिक प्राधिकार घोषित करने की मांग संबंधी याचिका पर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भाजपा एवं कांग्रेस सहित छह पार्टियों से जवाब मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति अरूण कुमार मिश्रा तथा न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की खंडपीठ ने आज कहा-नोटिस जारी की जाती है। गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने सर्वोच्च अदालत से मांग की है कि राजनीतिक दलों से कहा जाए कि वे सभी चंदों के बारे में सूचना दें जिसमें 20000 रूपये से कम भी शामिल हो।
एडीआर की ओर से उपस्थित वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी है कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और ऐसे में वे आरटीआई कानून के प्रति उत्तरदायी हैं। केंद्रीय सूचना आयोग ने अपने विस्तृत आदेश में कहा था कि राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और ऐसे में उन्हें सूचना के अधिकार के कानून तहत सूचना देनी चाहिए।
वकील ने कहा कि राजनीतिक दलों को चंदे पर आयकर नहीं देना पड़ता और इससे अलावा 20,000 रूपये से कम के चंदे का कानून के तहत खुलासा भी नहीं करना पड़ता। उन्होंने कहा कि ये राजनीतिक दल विधायिका और विधि निर्माण प्रक्रिया पर भी नियंत्रण करते हैं।इससे पहले गैर सरकारी संगठन एडीआर ने उच्चतम न्यायालय का रूख कर मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग की थी।
उसने दावा किया था कि राजनीतिक दलों को चंदों रूप में तथा कारपोरेट, ट्रस्ट एवं व्यक्तियों से भारी-भरकम रकम मिलती है, हालांकि वे ऐसे चंदों के स्रोत के बारे में पूरी सूचना का खुलासा नहीं करते हैं। अपनी याचिका में एडीआर ने देश की सबसे बड़ी अदालत से आग्रह किया था कि वह सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के लिए अपनी आय के बारे में विस्तृत जानकारी का खुलासा करने को अनिवार्य बनाए। उसने चंदे और धन प्राप्ति का संपूर्ण विवरण घोषित करने की भी मांग की है। न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन और आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल की याचिका पर कांग्रेस और भाजपा के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), माकर््सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (एम) और बहुजन समाज पार्टी को भी नोटिस जारी किये हैं। मुख्य सूचना आयोग ने जून, 2013 में व्यवस्था दी थी कि सूचना के अधिकार कानून की धारा 2 (एच) के तहत राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकार हैं और इसलिए उन्हें इस कानून के तहत सूचना उपलब्ध करानी चाहिए।
इस संगठन और अग्रवाल ने इस आदेश पर अमल नहीं होने का आरोप लगाते हुये फिर मुख्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया था। याचिका के अनुसार मुख्य सूचना आयोग ने कहा कि उसका पहले का आदेश ही अंतिम और बाध्यकारी है। आयोग ने इस मामले में अपनी विवशता जाहिर की थी क्येांकि राजनीतिक दलों ने उसके समक्ष पेश होने से इंकार कर दिया था।

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