कभी वेस्ट यूपी के ताकतवर नेता रही पूर्व सांसद अब अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है
बिजनौर से विधानसभा के लिए टिकट की उम्मीद में लेकिन नहीं मिल रहा है संगठन का समर्थन
जनवरी में भाजपा ज्वाइन करते समय अनुराधा चौधरी। |
अनुराधा ने अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव पद पर रहते हुए अपने कैरियर की ऊंचाइयों को छुआ। अजित सिंह ने सपा के साथ मिलकर 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो अनुराधा चौधरी ने कैराना से भारी मतों से जीत हासिल की थी। उसी के बाद सांसद रहते हुए ही यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार में कैबिनेट मंत्री (सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण आयोग की अध्यक्ष) का उनके पास दर्जा रहा। इसके बाद वे 2009 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी। उस समय रालोद का भाजपा से गठबंधन था। बहुत कम लोगों को याद होगा लेकिन अनुराधा चौधरी के समर्थन में देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (उस समय गुजरात के सीएम) एसडी इंटर कालेज के ग्राउंड में रैली करने के लिए आए थे। इसी रैली ने अनुराधा की हार का कहानी लिखी थी। मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण एकमात्र मुसलमान प्रत्याशी (बसपा) कादिर राणा के समर्थन में हो गया और रही कसर कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हरेंद्र मलिक ने जाट मतों में सेंध लगाकर कर दी थी।
बिजनौर से लोस की सपा प्रत्याशी (2014) के रूप में प्रचार करती अनुराधा चौधरी। |
2009 की हार के बाद ही अनुराधा के बुरे दिन शुरू हुए थे। रालोद में अजित सिंह के बजाय उनके बेटे जयंत चौधरी व बहू चारू की ज्यादा चलने लगी और अनुराधा के भाव कम हो गए। अनुराधा और अजित सिंह के बीच सबसे बड़ी तकरार का मुद्दा बना 2012 के विधानसभा चुनाव में टिकटों को बंटवारा। कम से कम मुजफ्फरनगर और शामली जिलों की नौ सीटों पर अनुराधा अपने हिसाब से टिकट बांटना चाहती थी लेकिन उनकी नहीं सुनी गई। अनुराधा खुद भी बुढ़ाना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन अंत में उन्हें चुप बैठ जाना पड़ा। चुनाव से तीन महीने पहले अनुराधा ने चुपचाप लखनऊ जाकर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली। उन्हें कुछ आश्वासन दिया गया या नहीं ये तो कोई नहीं जानता लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें राज्यसभा या एमएलसी दिया जाएगा लेकिन कुछ नहीं हुआ।
2014 के लोकसभा चुनाव में अनुराधा चौधरी ने बिजनौर से टिकट मंजूर करा लेने में सफलता पा ली लेकिन दो-तीन महीने बाद ही आजम खां ने उनका टिकट कटवा दिया और अपने खास अमीर आलम खां को टिकट दिलवा दिया। सपा की सूबे में सरकार तो थी ही ऐसे में अखिलेश ने उन्हें सांत्वना के तौर पर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता बना दिया। आईटी से जुड़े ऐसे विभाग का जिम्मा उन्हें दिया गया जिसका कहीं कोई दफ्तर भी नहीं था। 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा प्रत्याशियों की पूरे सूबे में हुई बुरी हार के बाद सीएम अखिलेश यादव ने सारी फालतू की लाल बत्ती भी खत्म कर दी और अनुराधा को फिर घर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा। एक तरह से अनुराधा को सपा में ‘जबरन संन्यास’ लेने पर मजबूर किया गया।
सपा में ‘जबरन संन्यास’ के लिए मजबूर हो जाने के बाद अनुराधा चौधरी ने भाजपा में आने की कोशिशें शुरू कर दी। यूपी में तमाम भाजपा नेताओं ने अनुराधा का विरोध किया। प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान और संघ लॉबी ने भी अनुराधा को भाजपा में लेने का भारी विरोध किया। अनुराधा की किसी की न सुनने वाली प्रवृत्ति और ‘अहंकारी व्यवहार’ उनके लिए सबसे बड़ी बाधा बन रहा था। यूपी में किसी तरह भी एंट्री के दरवाजे न खुलने के बाद अनुराधा ने दिल्ली में अपनी बड़ी बहन किरण चौधरी (जो पहले दिल्ली की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रही हैं) के जरिये भाजपा में घुसने का रास्ता तलाशा और दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय व केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की मौजूदगी में 24 जनवरी 2015 को बीजपी ज्वाइन कर ली।
सपा में ‘जबरन संन्यास’ के लिए मजबूर हो जाने के बाद अनुराधा चौधरी ने भाजपा में आने की कोशिशें शुरू कर दी। यूपी में तमाम भाजपा नेताओं ने अनुराधा का विरोध किया। प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद व केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान और संघ लॉबी ने भी अनुराधा को भाजपा में लेने का भारी विरोध किया। अनुराधा की किसी की न सुनने वाली प्रवृत्ति और ‘अहंकारी व्यवहार’ उनके लिए सबसे बड़ी बाधा बन रहा था। यूपी में किसी तरह भी एंट्री के दरवाजे न खुलने के बाद अनुराधा ने दिल्ली में अपनी बड़ी बहन किरण चौधरी (जो पहले दिल्ली की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रही हैं) के जरिये भाजपा में घुसने का रास्ता तलाशा और दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय व केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की मौजूदगी में 24 जनवरी 2015 को बीजपी ज्वाइन कर ली।
मुजफ्फरनगर सांसद संजीव बालियान ने ज्वाइनिंग के समय जरूर अनुराधा का साथ दिया था लेकिन इसके बाद वे उनके साथ कभी नजर नहीं आए। |
दिल्ली में एंट्री होने के बाद से ही उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता अनुराधा चौधरी के खिलाफ लामबंदी में लगे हैं। बिजनौर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक व अब बिजनौर के सांसद कुंवर भरतेंद्र सिंह (जाट) ने जिले के सभी नेताओं को ताकीद कर दिया कि वे किसी भी तरह से अनुराधा का सहयोग न करें। मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद डॉ. संजीव बालियान ने तो साफ संकेत दे दिए हैं कि वे अनुराधा को मुजफ्फरनगर में राजनीति नहीं करने देंगे। भरतेंद्र के विधायक से सांसद बनने के बाद बिजनौर सीट खाली हुई तो उपचुनाव में सपा की रुचिवीरा ने भाजपा के हेंमेंद्र पाल सिंह को हराया। 2012 में जब यूपी के विस चुनाव हुए थे तो रूचि वीरा ही सपा की प्रत्याशी थी और अनुराधा चौधरी के पास लोकसभा की टिकट था। उस समय अनुराधा ने रूचि के समर्थन में खूब सभाएं की थीं। तभी से बिजनौर के भाजपा नेता अनुराधा के खिलाफ हैं। इसके अलावा भरतेंद्र को खतरा है कि अनुराधा अगर बिजनौर से विधायक बन गई तो अगली बार लोकसभा के टिकट भी की दावेदार हो सकती है। अब स्थिति ये है कि अनुराधा बिजनौर और चांदपुर विधानसभा सीटों से भाजपा का टिकट मांग रही हैं। अनुराधा को लग रहा है कि 2017 में यूपी में भाजपा सरकार के चांस हैं तो उनके मन में मंत्री बनने के अरमान भी फिर से जाग रहे हैं। बिजनौर में कुछ जगह उन्होंने होर्डिंग आदि भी लगवा दिए हैं और कुछ मीटिंग भी कर चुकी हैं लेकिन वहां का कार्यकर्ता उनके साथ खड़ा नहीं हो रहा है। ऐसे में उन्हें यहां भी जबरन संन्यास मिलता नजर आ रहा है। इस बारे में जब हमने अनुराधा से बात करनी चाही तो उन्होंने हमारे मैसेज को कोई जवाब नहीं दिया।
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