Saturday 12 May 2018

Kairana ByPoll 2018 : घर का भेदी लंका ढाए, तबस्सुम परेशानी में

शामलीः कैराना लोकसभा के उपचुनाव में एक बार फिर हसन परिवार की घरेलू लड़ाई खुलकर सामने आ गई है। विपक्ष की इकलौती उम्मीदवार पूर्व सांसद तबस्सुम बेगम को परेशान करने के लिए उनके देवर कंवर हसन ने लोकदल (सुनील सिंह वाली) प्रत्याशी के रूप में दावा ठोक दिया है।

कंवर हसन के अलावा मुनव्वर के दूसरे भाई अनवर हसन (2012 में) और अरशद हसन (2007 में) भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अब कंवर हसन आ गए हैं। कंवर हसन अब तक हसन परिवार का स्टील फैक्ट्री का कारोबार ही संभालते रहे हैं। पूर्व सांसद मुनव्वर हसन जब तक जिंदा थे तब तक पूरा हसन परिवार उनके कहे अनुसार चलता था लेकिन उनकी 2008 में असामयिक हादसे में मौत के बाद सारा परिवार बिखर गया। बाद में मुनव्वर हसन के पिता पूर्व सांसद अख्तर हसन भी वृद्धावस्था के चलते चल बसे। इस तरह हसन परिवार को जोड़कर रखने वाला कोई नहीं रहा। मायावती ने मुनव्वर की बेवा तबस्सुम को 2009 में लोकसभा का टिकट दे दिया और वे दिग्गज भाजपा नेता स्व. हुकुम सिंह (जो पहली बार लोकसभा चुनाव लडे थे) को हराकर सांसद बन गई। इसी के बाद से हसन परिवार में दो धड़े हो गए। मुनव्वर की पत्नी व बेटा नाहिद एक तरफ और उनके दूसरे भाई एक तरफ।
मृगांका पर बाबू हुकुम सिंह की विरासत बचाने का दबाव है। 
तबस्सुम ने पांच साल तक सांसद रहने के बाद अपनी राजनीतिक विरासत बेटे नाहिद हसन को सौंपने का फैसला किया। नाहिद उस समय आस्ट्रेलिया में पढ़ रहे थे और बहुत छोटे थे। नाहिद वापस लौटे और उन्होंने मां की बात मानकर कैराना सीट से ही सपा के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लडा। मोदी लहर में हुकुम सिंह ने बड़ी जीत हासिल की। उन्हें 565909 वोट मिले और नाहिद को 329081 वोट मिले। नाहिद को जीत नहीं मिली लेकिन राजनीति की एबीसी सीख गए।

हुकुम सिंह के सांसद बन जाने के बाद कैराना विधानसभा सीट का अक्टूबर 2014 में उपचुनाव हुआ और इसमें नाहिद हसन हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान को हराकर विधायक बन गए। इससे मुनव्वर हसन के दूसरे भाइयों में बेचैनी बढ़ी और उन्होंने राजनीति में सक्रियता बढ़ाने का फैसला किया। परिवारों में आपसी झगड़े होते ही रहते हैं और इस परिवार में भी थे। इससे पहले 2012 में मुनव्वर के एक और भाई अनवर हसन (60750) ने भी बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और हुकुम सिंह (80293) से लगभग 20 हजार मतों से हारे थे। नाहिद उस समय विदेश में थे। मुनव्वर के भाइयों को लगा कि वे राजनीति में आगे आ सकते हैं। शायद यही वजह है कि अब कंवर हसन भी राजनीति में आए हैं।

कैराना लोकसभा उपचुनाव 2018 में भाजपा की प्रत्याशी स्व. हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह की जीत मुश्किल लग रही है। सारा विपक्ष एक हो गया है और पूर्व बसपा सांसद तबस्सुम को सपा, रालोद व कांग्रेस आदि का समर्थन मिल रहा है। ऐसे में उनकी जीत साफ नजर आ रही थी लेकिन एक और मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में आता है तो खेल बिगड़ सकता है। लगभग 5 लाख मुस्लिम वोटरों वाले इस लोकसभा क्षेत्र में दो मुस्लिम प्रत्याशी तो होते ही थे। इससे भाजपा को भी राहत मिलेगी। सुनील सिंह की लोकदल की इस क्षेत्र में ज्यादा पहचान नहीं है लेकिन फिर भी ‘मनीगेम’ में वह हलचल कर सकते हैं। सुनील सिंह राजनीतिक परिवार से आते हैं और लखनऊ में उनके कई बड़े शैक्षणिक संस्थान हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि भाजपा ने कंवर हसन को अंदरूनी तौर पर सपोर्ट करने का फैसला किया है लेकिन ये सब राजनीति की बाते हैं।


 पिछले विधानसभा चुनाव में जब नाहिद हसन (98830) ने मृगांका (77668) को हराया था तो हुकुम सिंह के भतीजे अनिल (19992) ने रालोद के टिकट पर लड़कर ‘घर का भेदी लंका ढाए’ की भूमिका निभाई थी। अब यही काम कंवर हसन कर सकते हैं। वे जितने भी वोट काटेंगे सभी तबस्सुम के खाते से जाएंगे। देखते हैं 28 मई को चुनाव है और 31 को नतीजा आएगा। तब सब साफ हो जाएगा।

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