लखनऊः पूरे देश में चर्चा और आलोचना का विषय बने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दो साल पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों की जांच कर रहे न्यायमूर्ति विष्णु सहाय ने आज अपनी रिपोर्ट राज्यपाल राम नाईक को सौंप दी। राजभवन से जारी बयान के मुताबिक अवकाशप्राप्त न्यायमूर्ति सहाय ने राज्यपाल से मुलाकात करके उन्हें मुजफ्फरनगर दंगों की छह खण्डों में बंटी 775 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी। नाईक इस रिपोर्ट को समुचित कार्रवाई के लिये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास भेजेंगे। इस रिपोर्ट में क्या है इसका सबको बेसब्री से इंतजार है। आरोप लगे थे कि यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री आजम खान व मुजफ्फरनगर के ही सपा नेता अमीर आलम खान की वजह से ही ये दंगे भड़के थे। हालांकि बाद में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने ये कहा था कि ये दंगे केवल जाट व मुस्लिम समुदाय के बीच हुई जातीय हिंसा थी न कि सांप्रदायिक दंगा।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने अगस्त-सितम्बर 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में शुरू हुए साम्प्रदायिक दंगों की न्यायिक जांच के लिये नौ सितम्बर 2013 को अवकाशप्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था। इस आयोग का गठन 'कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट 1952’ के प्रावधानों के तहत किया गया था।
मुजफ्फरनगर दंगों में कम से कम 62 लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 अन्य घायल हो गये थे। इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गये थे। हालात बेकाबू होने पर सेना को तैनात करना पड़ा था। ऐसा करीब दो दशक बाद किया गया था। इन दंगों को प्रदेश के हालिया इतिहास के सबसे भयानक फसाद माना गया था।
विष्णु सहाय आयोग को कई बार अवधि विस्तार दिया गया था। आयोग ने जांच के दौरान 100 से ज्यादा अधिकारियों समेत 476 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किये थे। राज्य सरकार ने आयोग से कहा था कि वह 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में छेड़छाड़ को लेकर दो समुदायों के बीच हुए हिंसक टकराव और उसके बाद हुए दंगों के समूचे प्रकरण की जांच करके दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट दे, लेकिन मीयाद खत्म होने के बाद आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया गया था। आयोग से यह भी कहा गया था कि वह मुजफ्फरनगर तथा उसके आसपास के कुछ जिलों में हुए दंगों को रोकने में प्रशासन की लापरवाही की आशंका की भी जांच करे।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने अगस्त-सितम्बर 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में शुरू हुए साम्प्रदायिक दंगों की न्यायिक जांच के लिये नौ सितम्बर 2013 को अवकाशप्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था। इस आयोग का गठन 'कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट 1952’ के प्रावधानों के तहत किया गया था।
मुजफ्फरनगर दंगों में कम से कम 62 लोगों की मौत हुई थी और करीब 100 अन्य घायल हो गये थे। इसके अलावा 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हो गये थे। हालात बेकाबू होने पर सेना को तैनात करना पड़ा था। ऐसा करीब दो दशक बाद किया गया था। इन दंगों को प्रदेश के हालिया इतिहास के सबसे भयानक फसाद माना गया था।
विष्णु सहाय आयोग को कई बार अवधि विस्तार दिया गया था। आयोग ने जांच के दौरान 100 से ज्यादा अधिकारियों समेत 476 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किये थे। राज्य सरकार ने आयोग से कहा था कि वह 27 अगस्त 2013 को मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में छेड़छाड़ को लेकर दो समुदायों के बीच हुए हिंसक टकराव और उसके बाद हुए दंगों के समूचे प्रकरण की जांच करके दो महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट दे, लेकिन मीयाद खत्म होने के बाद आयोग का कार्यकाल बढ़ा दिया गया था। आयोग से यह भी कहा गया था कि वह मुजफ्फरनगर तथा उसके आसपास के कुछ जिलों में हुए दंगों को रोकने में प्रशासन की लापरवाही की आशंका की भी जांच करे।
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