कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया ने किया मोदी पर हमला
कहा, जो राह खुद बनाई थी उसी पर हम भी चल रहे हैं तो क्या गलत?
नई दिल्ली: संसद में चल रहे गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से प्रधानमंत्री द्वारा ललितगेट और व्यापमं मामले में हस्तक्षेप करने के प्रस्ताव को कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने आक्रामक रूख अपनाते हुए खारिज कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जो लोग 'गलत कार्यों’ के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें पहले इस्तीफा देना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि विदेश मंत्री और दो मुख्यमंत्रियों द्वारा 'किए गए घोर अपराधों पर उनकी चुप्पी खटक रही है।
सोनिया ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री और भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि 'मन की बात’ के चैंपियन ने 'मौन व्रत’ धारण कर लिया है। कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि पार्टी का रुख इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट है कि जब तक गलत कार्यों के लिए जिम्मेदार लोग पदों पर बने रहेंगे, तब तक कोई सकारात्मक चर्चा या अर्थपूर्ण कार्यवाही नहीं हो सकती। दो सप्ताह के गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठक से पहले सोनिया गांधी ने कहा कि हमारा रुख पहले दिन से ही साफ और स्पष्ट है। विदेश मंत्री और दो मुख्यमंत्रियों के इस्तीफों की मांग करने के लिए प्रधानमंत्री के सामने सार्वजनिक तौर पर अखंडनीय साक्ष्यों का पूरा पहाड़ है।
'पहले इस्तीफा, बाद में चर्चा’ वाले रुख के लिए आवाज उठाते हुए सोनिया गांधी ने इस बात पर हैरानी जताई कि क्या भाजपा यह भूल गई है कि वह इस सिद्धांत की लेखक है और इसका इस्तेमाल वर्ष 1993 के बाद से वह कम से कम पांच बार कर चुकी है। इससे पहले उन्होंने कहा कि चूंकि स्मृतियों की उम्र कम होती है, ऐसे में पार्टी को अपनी सुविधा के अनुसार चयनशील विस्मरण से पीडि़त अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को बातें याद दिलानी होंगी। उन्होंने कहा कि आज हमें उन लोगों से संसदीय व्यवहार पर उपदेश सुनने पड़ रहे हैं, जिन्होंने विपक्ष में रहने के दौरान गतिरोध का न सिर्फ बचाव किया बल्कि एक वैध रणनीति के रूप में इसका समर्थन भी किया। उन्होंने कहा कि कल दोनों सदनों में आंदोलन करने वाले आज अचानक ही बहस और चर्चा के समर्थक बन गए हैं।
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने घोषणा की कि कांग्रेस संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह जोरदार ढंग से अपनी बात रखती रहेगी। मानसून सत्र समाप्त होने में सिर्फ दो सप्ताह बचे हैं। गतिरोध को खत्म करने की कोशिश करते हुए संसदीय मामलों के मंत्री एम वैंकेया नायडू ने कहा था कि प्रधानमंत्री ललित मोदी और व्यापमं मुद्दों पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करने के लिए तैयार रहेंगे। सोनिया ने आज आरोप लगाया कि यह गतिरोध जनमत के प्रति मोदी सरकार की घोर असंवेदनशीलता के कारण, भ्रष्टाचार के बड़े कृत्यों पर पूर्ण चुप्पी और कानून के जानबूझकर किए जाने वाले उल्लंघन एवं इसके नेताओं के खराब आचरण के कारण है।
सरकार द्वारा कांग्रेस के खिलाफ लगाए गए संसद बाधित करने के आरोपों के जवाब में सोनिया ने कहा कि मैं बता देना चाहती हूं कि हम भाजपा द्वारा पूर्व में दिखाई गई आक्रामकता से सिर्फ बराबरी करने के लिए आक्रामक नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें सरकार के पूर्णतया निर्लज्ज रवैये के कारण अपना मोर्चा संभालने के लिए विवश होना पड़ा। निश्चित तौर पर हम चाहते हैं कि दोनों सदन चलें। निश्चित तौर पर हम चाहते हैं कि विधेयकों पर बहस हो और उन्हें पारित किया जाए। उन्होंने कहा कि इस सरकार ने लंबे समय तक अपने संख्याबल का इस्तेमाल जिम्मेदारी के बजाय 'अहंकार के स्रोत’ के रूप में किया है। उन्होंने कहा कि पहले, संसद को दरकिनार किया गया और बड़ी संख्या में अध्यादेश जारी किए गए, कुछ को पुन: भी जारी किया गया। विधेयक स्थायी समितियों को नहीं भेजे गए और अब इस संख्याबल का इस्तेमाल जांच के स्थान पर सिर्फ चर्चा को देने के लिए किया जा रहा है। यह हमें अस्वीकार्य है और इस सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए जो कुछ भी जरूरी होगा, वह हम करेंगे।
सोनिया ने कहा कि संसदीय बहुमत से किसी को जवाबदेही से बच निकलने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। उन्होंने कहा कि सरकार के गड़बड़ी भरे कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाना हमारा संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य है। प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए सोनिया ने कहा कि वादे करने के समय तो उन्होंने बड़े मुक्त भाव से वादे किए ,लेकिन इन्हें पूरा करने में वह पूरी तरह असमर्थ रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर तो वह कभी भी पारदर्शिता, ईमानदारी और जवाबदेही पर उच्च नैतिक मूल्यों का दावा करने का कोई अवसर नहीं चूकते, वहीं दूसरी ओर, अपनी विदेश मंत्री और दो मुख्यमंत्रियों द्वारा किए गए अधिकार क्षेत्र के घोर उल्लंघनों पर उनकी चुप्पी खटकती है।
कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर चुकी मोदी सरकार का पूरी तरह पर्दाफाश हो चुका है। सोनिया ने कहा कि निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री पुरानी चीजों को नए पैकेज में पेश करने में सिद्धहस्त, एक कुशल विक्रेता, सुर्खियां बटोरने में माहिर और खबरों के चतुर प्रबंधक रहे हैं। एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जब संप्रग के किसी कार्यक्रम को नया नाम या नया रूप न दिया गया हो। प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए सोनिया ने कहा कि कांग्रेस प्रधानमंत्री के इस विशेषाधिकार से इंकार नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि हमारी योजनाओं और पहलों पर अपना अधिकार कर लेने से भी ज्यादा खेदजनक और विनाशकारी यह है कि सामाजिक क्षेत्र की इन योजनाओं के लिए बजट आवंटन में कटौती की जा रही है।
संसद में कांग्रेस के इस अभियान में कोई ढील न दिए जाने के स्पष्ट संकेत देते हुए पार्टी प्रमुख ने कहा कि हम लंबी अवधि तक सरकार में रहे हैं और हम सरकार की अनिवार्यताओं को समझते हैं। हम राष्ट्रहित के कार्यक्रमों और विधेयकों को समर्थन देने की हमारी जिम्मेदारी के बारे में भी पूरी तरह वाकिफ हैं। सरकार और इसके 'सर्वोच्च नेता’ के 'स्वीकार करो या छोड़ दो’ वाले रवैये को सभी लोकतांत्रिक नियमों के खिलाफ बताते हुए सोनिया ने कहा कि अहंकार से भरे हुए, दिखावटी और पाखंडी भाषण नहीं चलेंगे। यह सरकार की मूलभूत जिम्मेदारी है कि वह सहयोग के लिहाज से मददगार माहौल को बढ़ावा दे। उन्होंने दावा किया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक विचारधारा विशेष का बंधक बना दिया गया है, यह पूरे देश, विशेषकर युवाओं के लिए चिंता का विषय होना चाहिए जिनका भविष्य सांप्रदायिकता और अध्ययन एवं संस्कृति का स्तर कम करके खतरे में डाला जा रहा है। सोनिया ने आरोप लगाया कि उच्च शिक्षा के जिन संस्थानों को कई दशकों में बेहद सावधानी के साथ खड़ा किया गया, उनकी स्वायत्तता और क्षमता में व्यवस्थागत ढंग से गिरावट आ रही है।
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में कटौतियों के लिए सरकार पर हमला बोलते हुए सोनिया ने कहा कि क्या यह काफी लोगों को छोड़कर कुछ ही लोगों को लाभ पहुंचाने का मोदी मॉडल है, जिसमें बेहद कमजोर लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है। उन्होंने यूनिसेफ द्वारा बाल स्वास्थ्य पर कराए गए एक सर्वेक्षण को 'छिपाकर रखने’ के लिए भी उन पर निशाना साधा। सोनिया के अनुसार, यह सर्वेक्षण बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न सूचकांकों के आधार पर गुजरात की एक खराब तस्वीर पेश करता है। सोनिया ने राज्यों के विशेष दर्जे को समाप्त करने पर भी सरकार पर हमला बोला। इन राज्यों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य भी शामिल हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी किसान-विरोधी नीतियों ने ग्रामीण भारत को 'अपंगÓ बना दिया है। सोनिया ने कहा कि किसान वर्ष 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के खिलाफ खड़े हैं। सरकार अधिकतम बिक्री मूल्य को उस तरह से बढ़ाने में विफल रही है, जिस तरह से संप्रग इसे बढ़ाती थी। वहीं दूसरी ओर गेहूं के बड़े स्तर पर आयात के लिए द्वार खोल दिए गए हैं। क्या 'मेक इन इंडिया’ हमारे किसानों पर लागू नहीं होता?
सोनिया ने कहा कि स्थितियों को और भी अधिक खराब करने के लिए कृषि मंत्री किसानों की आत्महत्याओं के सवाल पर घृणित जवाब देकर उनके जख्मों पर नमक छिड़कते हैं। नारियल, कॉफी और चाय उत्पादकों की तरह रबड़ के उत्पादक भी भारी संकट का सामना कर रहे हैं। फिर भी सरकार पर कोई असर नहीं है और इन बोर्डों के शीर्ष पद कई महीनों से खाली पड़े हैं। कांग्रेस प्रमुख ने नागरिक समाज के संगठनों और सामाजिक कार्य समूहों के साथ कड़ाई बरतने के लिए भी सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार किसी भी जमीनी स्तर के आंदोलन और मुखरता को चुप कराने में बेहद फुर्तीली रही है। हजारों गैर सरकारी संगठनों पर सरकार के सख्त कदमों के कारण खतरा मंडरा रहा है। कुछ गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ उठाए जाने वाले इन कदमों में प्रतिशोध की भावना स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। ये वे संगठन हैं, जो सत्ता में बैठे लोगों के काले कारनामों का पर्दाफाश करते रहे हैं।
सोनिया ने कांग्रेस संसदीय दल की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री और भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि 'मन की बात’ के चैंपियन ने 'मौन व्रत’ धारण कर लिया है। कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि पार्टी का रुख इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट है कि जब तक गलत कार्यों के लिए जिम्मेदार लोग पदों पर बने रहेंगे, तब तक कोई सकारात्मक चर्चा या अर्थपूर्ण कार्यवाही नहीं हो सकती। दो सप्ताह के गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा बुलाई जाने वाली सर्वदलीय बैठक से पहले सोनिया गांधी ने कहा कि हमारा रुख पहले दिन से ही साफ और स्पष्ट है। विदेश मंत्री और दो मुख्यमंत्रियों के इस्तीफों की मांग करने के लिए प्रधानमंत्री के सामने सार्वजनिक तौर पर अखंडनीय साक्ष्यों का पूरा पहाड़ है।
'पहले इस्तीफा, बाद में चर्चा’ वाले रुख के लिए आवाज उठाते हुए सोनिया गांधी ने इस बात पर हैरानी जताई कि क्या भाजपा यह भूल गई है कि वह इस सिद्धांत की लेखक है और इसका इस्तेमाल वर्ष 1993 के बाद से वह कम से कम पांच बार कर चुकी है। इससे पहले उन्होंने कहा कि चूंकि स्मृतियों की उम्र कम होती है, ऐसे में पार्टी को अपनी सुविधा के अनुसार चयनशील विस्मरण से पीडि़त अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों को बातें याद दिलानी होंगी। उन्होंने कहा कि आज हमें उन लोगों से संसदीय व्यवहार पर उपदेश सुनने पड़ रहे हैं, जिन्होंने विपक्ष में रहने के दौरान गतिरोध का न सिर्फ बचाव किया बल्कि एक वैध रणनीति के रूप में इसका समर्थन भी किया। उन्होंने कहा कि कल दोनों सदनों में आंदोलन करने वाले आज अचानक ही बहस और चर्चा के समर्थक बन गए हैं।
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने घोषणा की कि कांग्रेस संसद के भीतर और बाहर दोनों जगह जोरदार ढंग से अपनी बात रखती रहेगी। मानसून सत्र समाप्त होने में सिर्फ दो सप्ताह बचे हैं। गतिरोध को खत्म करने की कोशिश करते हुए संसदीय मामलों के मंत्री एम वैंकेया नायडू ने कहा था कि प्रधानमंत्री ललित मोदी और व्यापमं मुद्दों पर चर्चा के दौरान हस्तक्षेप करने के लिए तैयार रहेंगे। सोनिया ने आज आरोप लगाया कि यह गतिरोध जनमत के प्रति मोदी सरकार की घोर असंवेदनशीलता के कारण, भ्रष्टाचार के बड़े कृत्यों पर पूर्ण चुप्पी और कानून के जानबूझकर किए जाने वाले उल्लंघन एवं इसके नेताओं के खराब आचरण के कारण है।
सरकार द्वारा कांग्रेस के खिलाफ लगाए गए संसद बाधित करने के आरोपों के जवाब में सोनिया ने कहा कि मैं बता देना चाहती हूं कि हम भाजपा द्वारा पूर्व में दिखाई गई आक्रामकता से सिर्फ बराबरी करने के लिए आक्रामक नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें सरकार के पूर्णतया निर्लज्ज रवैये के कारण अपना मोर्चा संभालने के लिए विवश होना पड़ा। निश्चित तौर पर हम चाहते हैं कि दोनों सदन चलें। निश्चित तौर पर हम चाहते हैं कि विधेयकों पर बहस हो और उन्हें पारित किया जाए। उन्होंने कहा कि इस सरकार ने लंबे समय तक अपने संख्याबल का इस्तेमाल जिम्मेदारी के बजाय 'अहंकार के स्रोत’ के रूप में किया है। उन्होंने कहा कि पहले, संसद को दरकिनार किया गया और बड़ी संख्या में अध्यादेश जारी किए गए, कुछ को पुन: भी जारी किया गया। विधेयक स्थायी समितियों को नहीं भेजे गए और अब इस संख्याबल का इस्तेमाल जांच के स्थान पर सिर्फ चर्चा को देने के लिए किया जा रहा है। यह हमें अस्वीकार्य है और इस सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए जो कुछ भी जरूरी होगा, वह हम करेंगे।
सोनिया ने कहा कि संसदीय बहुमत से किसी को जवाबदेही से बच निकलने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। उन्होंने कहा कि सरकार के गड़बड़ी भरे कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाना हमारा संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य है। प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए सोनिया ने कहा कि वादे करने के समय तो उन्होंने बड़े मुक्त भाव से वादे किए ,लेकिन इन्हें पूरा करने में वह पूरी तरह असमर्थ रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर तो वह कभी भी पारदर्शिता, ईमानदारी और जवाबदेही पर उच्च नैतिक मूल्यों का दावा करने का कोई अवसर नहीं चूकते, वहीं दूसरी ओर, अपनी विदेश मंत्री और दो मुख्यमंत्रियों द्वारा किए गए अधिकार क्षेत्र के घोर उल्लंघनों पर उनकी चुप्पी खटकती है।
कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि अपने कार्यकाल का एक साल पूरा कर चुकी मोदी सरकार का पूरी तरह पर्दाफाश हो चुका है। सोनिया ने कहा कि निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री पुरानी चीजों को नए पैकेज में पेश करने में सिद्धहस्त, एक कुशल विक्रेता, सुर्खियां बटोरने में माहिर और खबरों के चतुर प्रबंधक रहे हैं। एक दिन भी ऐसा नहीं जाता, जब संप्रग के किसी कार्यक्रम को नया नाम या नया रूप न दिया गया हो। प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए सोनिया ने कहा कि कांग्रेस प्रधानमंत्री के इस विशेषाधिकार से इंकार नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि हमारी योजनाओं और पहलों पर अपना अधिकार कर लेने से भी ज्यादा खेदजनक और विनाशकारी यह है कि सामाजिक क्षेत्र की इन योजनाओं के लिए बजट आवंटन में कटौती की जा रही है।
संसद में कांग्रेस के इस अभियान में कोई ढील न दिए जाने के स्पष्ट संकेत देते हुए पार्टी प्रमुख ने कहा कि हम लंबी अवधि तक सरकार में रहे हैं और हम सरकार की अनिवार्यताओं को समझते हैं। हम राष्ट्रहित के कार्यक्रमों और विधेयकों को समर्थन देने की हमारी जिम्मेदारी के बारे में भी पूरी तरह वाकिफ हैं। सरकार और इसके 'सर्वोच्च नेता’ के 'स्वीकार करो या छोड़ दो’ वाले रवैये को सभी लोकतांत्रिक नियमों के खिलाफ बताते हुए सोनिया ने कहा कि अहंकार से भरे हुए, दिखावटी और पाखंडी भाषण नहीं चलेंगे। यह सरकार की मूलभूत जिम्मेदारी है कि वह सहयोग के लिहाज से मददगार माहौल को बढ़ावा दे। उन्होंने दावा किया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक विचारधारा विशेष का बंधक बना दिया गया है, यह पूरे देश, विशेषकर युवाओं के लिए चिंता का विषय होना चाहिए जिनका भविष्य सांप्रदायिकता और अध्ययन एवं संस्कृति का स्तर कम करके खतरे में डाला जा रहा है। सोनिया ने आरोप लगाया कि उच्च शिक्षा के जिन संस्थानों को कई दशकों में बेहद सावधानी के साथ खड़ा किया गया, उनकी स्वायत्तता और क्षमता में व्यवस्थागत ढंग से गिरावट आ रही है।
सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं में कटौतियों के लिए सरकार पर हमला बोलते हुए सोनिया ने कहा कि क्या यह काफी लोगों को छोड़कर कुछ ही लोगों को लाभ पहुंचाने का मोदी मॉडल है, जिसमें बेहद कमजोर लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है। उन्होंने यूनिसेफ द्वारा बाल स्वास्थ्य पर कराए गए एक सर्वेक्षण को 'छिपाकर रखने’ के लिए भी उन पर निशाना साधा। सोनिया के अनुसार, यह सर्वेक्षण बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न सूचकांकों के आधार पर गुजरात की एक खराब तस्वीर पेश करता है। सोनिया ने राज्यों के विशेष दर्जे को समाप्त करने पर भी सरकार पर हमला बोला। इन राज्यों में पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य भी शामिल हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी किसान-विरोधी नीतियों ने ग्रामीण भारत को 'अपंगÓ बना दिया है। सोनिया ने कहा कि किसान वर्ष 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों के खिलाफ खड़े हैं। सरकार अधिकतम बिक्री मूल्य को उस तरह से बढ़ाने में विफल रही है, जिस तरह से संप्रग इसे बढ़ाती थी। वहीं दूसरी ओर गेहूं के बड़े स्तर पर आयात के लिए द्वार खोल दिए गए हैं। क्या 'मेक इन इंडिया’ हमारे किसानों पर लागू नहीं होता?
सोनिया ने कहा कि स्थितियों को और भी अधिक खराब करने के लिए कृषि मंत्री किसानों की आत्महत्याओं के सवाल पर घृणित जवाब देकर उनके जख्मों पर नमक छिड़कते हैं। नारियल, कॉफी और चाय उत्पादकों की तरह रबड़ के उत्पादक भी भारी संकट का सामना कर रहे हैं। फिर भी सरकार पर कोई असर नहीं है और इन बोर्डों के शीर्ष पद कई महीनों से खाली पड़े हैं। कांग्रेस प्रमुख ने नागरिक समाज के संगठनों और सामाजिक कार्य समूहों के साथ कड़ाई बरतने के लिए भी सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सरकार किसी भी जमीनी स्तर के आंदोलन और मुखरता को चुप कराने में बेहद फुर्तीली रही है। हजारों गैर सरकारी संगठनों पर सरकार के सख्त कदमों के कारण खतरा मंडरा रहा है। कुछ गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ उठाए जाने वाले इन कदमों में प्रतिशोध की भावना स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है। ये वे संगठन हैं, जो सत्ता में बैठे लोगों के काले कारनामों का पर्दाफाश करते रहे हैं।
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