निर्णय के पीछे कारणों के बारे में बताते हुए अधिकारी ने कहा कि सरकार ने केवल उच्चतम न्यायालय के निर्देश का पालन किया है। न्यायालय ने अश्लील वेबसाइट्स खासकर बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियों पर रोक लगाने को कहा है। हालांकि, उसने यह भी कहा कि चूंकि मामला बेहद जटिल है, ऐसे में गैर-सरकारी संगठनों, समाज, अभिभावक समूह, बच्चों को परामर्श देने वालों, आईएसपी तथा सरकार को शामिल कर मामले को विस्तार से सुना जाए और सभी के विचारों को जानने के बाद न्यायालय अपना दिशानिर्देश दे।
सरकार का मानना है कि जब मामले में समुचित दिशानिर्देश आएगा, इससे देश में स्वास्थ्यवद्र्धक स्थिर तत्व तैयार होंगे। अधिकारी ने कहा कि सरकार को इस पूरी प्रक्रिया से अलग रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा,आतंकवाद, उग्रवाद, सांप्रदायिकता के मामले में अंतिम रूप से निर्णय का अधिकार सरकार के पास होगा, टीवी ओम्बड्समैन की तरह ओम्बड्समैन को इस बारे में निर्णय करने दीजिए। अधिकारी के अनुसार ओम्बड्समैन उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या नागरिक समाज का कोई व्यक्ति हो सकता है। सभी संबद्ध पक्ष साइबर सामग्री संबंधी मुद्दों के बारे में नियामकीय प्रणाली के संदर्भ में अपने विचार दे सकते हैं। इस बीच, इस निर्णय को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गयी है। कई लोगों ने इसे इंटरनेट पर सेंसरशिप करार दिया है। उल्लेखनीय है कि आठ जुलाई को सरकार ने उच्चतम न्यायालय को भरोसा दिलाया था कि ऐसी वेबसाइटों पर रोक लगाने के लिये सभी संभव कदम उठाये जाएंगे।
No comments:
Post a Comment