Thursday 23 August 2018

एयरपोर्ट पर राहुल गांधी को यूं मिला प्यार

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों नए अंदाज में नजर आ रहे हैं। वे लोगों से मिल रहे हैं संपर्क कर रहे हैं और उनसे जानना चाहते हैं कि वे अपने देश के लिए कैसा नेतृत्व चाहते हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि विदेश में भी वे लोगों की राय ले रहे हैं। वे चार दिन के दौरे पर जर्मनी व इंग्लैंड में हैं। वहां वे लोगों से, नेताओं से, भारतीयों व राजनयिकों से मिल रहे हैं। उनके साथ मुंबई के पूर्व सांसद मिलिंद देवड़ा भी हैं।
लंदन जाते समय एयरपोर्ट पर उन्हें भूख लगी तो मिलिंद व राहुल ने एक कैफे में जूस पिया। सब यह देखकर चौंक गए कि दुकान पर बैठा शख्स भारतीय था और उसने राहुल को पहचान लिया। राहुल उससे बहुत ही सहृदयता से मिले और काफी समय उससे बाद भी की। उस शख्स ने राहुल को बहुत सम्मान दिया। कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभारी दिव्या स्पंदना राम्या ने इस दौरे के कुछ क्षण सोशल मीडिया पर शेयर किएः-















Thursday 16 August 2018

Full Text : अमित शाह की अटल जी को श्रद्धांजलि,पढिए क्या लिखा उन्होंने

अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है। वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के बेजोड़ नेता रहे। अपनी वक्तृत्व क्षमता से वे लोगों के दिलो में बसते थे। उनकी वाणी पर सरस्वती विराजमान थी। वे उदारता के प्रणेता थे।

समता समरसता की अलख जगाने वाले साधक थे। वे एक ऐसे युग मनीषी थे, जिनके हाथों में काल के कपाल पर लिखने, मिटाने का अमरत्व था। पांच दशक के लंबे संसदीय जीवन मे देश की राजनीति ने इस तपस्वी को सदैव पलकों पर बिठाए रखा। एक ऐसा तपस्वी जो आजीवन राग-अनुराग और लोभ-द्वेष से दूर राजनीति को मानव सेवा की प्रयोगशाला सिद्ध करने में लगा रहा।
अटल जी का जीवन आदर्शमयी प्रतिभा का ऐसा इंद्रधनुष था जिसके हर रंग में मौलिकता की छाप थी। पत्रकार का जीवन जिया तो उसके शीर्षस्थ प्रतिमानों के हर खांचे पर कुंदन की तरह खरे उतरे। राष्ट्रधर्म, वीर अर्जुन, पांचजन्य जैसे पत्रों को उनकी प्रमाणिकता और लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाया। कवि की भूमिका अपनाई तो उदारमना चेतना की समस्त उपमाएं बौनी कर दीं। अंतःकरण से गाया। श्वासों से निभाया। कभी कुछ मांगा भी तो बस इतना-
“मेरे प्रभु!
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूं
इतनी रुखाई कभी मत देना।”
उनके भीतर का राजनेता हमेशा शोषितों और वंचितों की पीड़ा से तड़पता रहा। उनके राजनीतिक जीवन की बस एक ही दृष्टि रही कि एक ऐसे भारत का निर्माण कर सकें जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। वे इसी आदर्श के लिए जिए। इसी की खातिर मरे। जीवन मे न कुछ जोड़ा, न घटाया। सिर्फ दिया। वो भी निस्पृह हाथों से। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के आदर्शों की फलित भूमि पर उन्होंने राजनीति के जो अजेय सोपान गढ़े वो आज ऐसी लकीर बन चुके हैं जिन्हें पार करने का साहस स्वयं काल के पास भी नही।
देश के सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के ‘अटल जी’ यानी अटल बिहारी वाजपेयी हमारी इस राजनीति से कहीं ऊपर थे। मन, कर्म और वचन से राष्ट्रवाद का व्रत लेने वाले वे अकेले राजनेता थे। देश हो या विदेश अपनी पार्टी हो या विरोधी दल सभी उनकी प्रतिभा के कायल थे। सिर्फ़ बीसवीं सदी के ही नहीं वे इक्कीसवीं सदी के भी सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय वक्ता रहे। 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी वाजपेयी में भारत का भविष्य देखा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ‘वे एक दिन भारत का नेतृत्व करेंगे। डा.राममोहर लोहिया उनके हिंदी प्रेम के प्रशंसक थे। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उन्हें संसद में ‘गुरुदेव’ कह कर ही बुलाते थे। डा.मनमोहन सिंह ने न्यूक्लियर डील के दौरान 5 मार्च 2008 को संसद में उन्हें राजनीति का भीष्म पितामह कहा था। इस देश में ऐसे गिनती के लोग होंगे, जिन्हें जनसभा से लेकर लोकसभा तक लोग नि:शब्द होकर सुनते थे।
ग्वालियर के शिंदे की छावनी से 25 दिसंबर 1924 को शुरू हुआ अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर, पत्रकार संपादक, कवि, राजनेता, लोकप्रिय वक्ता से होता भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा था। उनकी यह यात्रा बेहद ही रोचक और अविस्मरणीय रही। तीन बार देश के प्रधानमंत्री बनने वाले अटल बिहारी वाजपेयी सही मायनों में पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे। यानी अब तक बने प्रधानमंत्रियों से इतर न तो वे कभी कांग्रेस में रहे, न नही कांग्रेस के समर्थन से रहे। वो शुद्ध अर्थों में कांग्रेस विरोधी राजनीति की धुरी थे। पंडित नेहरु के बाद वे अकेले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने लगातार तीन जनादेशों के बाद प्रधानमंत्री का पद पाया।
भारतीय राजनीति के इस सदाबहार नायक ने विज्ञान से एम.ए. करने के बाद पत्रकारिता की और तीन समाचार पत्रों ‘राष्ट्रधर्म’, ‘पांचजन्य’ और ‘वीर अर्जुन’ का संपादन भी किया। वाजपेयी जी देश के एक मात्र सांसद थे, जिन्होंने देश की छह अलग- अलग सीटों से चुनाव जीता था। हाजिर जवाब वाजपेयी पहले प्रधानमंत्री थे, जो प्रधानमंत्री बनने से पहले लंबे समय तक नेता विरोधी दल रहे। भारतीय राजनीति के विस्तृत कैनवास को अटल जी ने सूक्ष्मता और व्यापकता से समझा। वे उसके हर रंग को पहचानते थे। इसलिए प्रभावी रुप से उसे बिखेरते थे। वे ऐसे वक्ता थे जिनके पास इस देश के सवा सौ करोड़ श्रोताओं में से सबके लिए कुछ न कुछ मौलिक था। इसीलिए गए साठ वर्षों से देश उनकी ओर खींचता चला गया।
अटल जी के शासनकाल में भारत दुनिया के उन ताकतवर देशों में शुमार हुआ, जिनका सभी लोहा मानने लगे। पोखरण में परमाणु विस्फोटों की श्रृंखला से हम दुनिया के सामने सीना तान सके। प्रधानमंत्री रहते उन्होंने ‘भय’ और ‘भूखमुक्त’ भारत का सपना देखा था। बतौर विदेशमंत्री उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी को गुंजाया था। अटल जी जीवन भर इस घटना को अपना सबसे सुखद क्षण मानते रहे। जिनेवा के उस अवसर को आज भी भारतीय कूटनीति की मिसाल कहा जाता है जब भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व करते हुए आतंकवाद के सवाल पर वाजपेयी जी ने पाकिस्तान को अलग- थलग कर दिया था। तब देश के प्रधानमंत्री पी.वी नरसिंह राव थे। ये उनकी ही सोच थी जो संकीर्णताओं की दहलीज पारकर चमकती थी और सीधा विश्व चेतना को संबोधित करती थी कि मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते। न मैदान जीतने से मन जीते जाते हैं। ये बात उन्होंने तब कही थी जब 14 साल बाद भारतीय टीम पाकिस्तान के ऐतिहासिक क्रिकेट दौरे पर गई थी।
वे देश के चारों कोनों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी अविस्मरणीय योजना के शिल्पी थे। नदियों के एकीकरण जैसे कालजयी स्वप्न के द्रष्टा थे। मानव के रूप में महामानव थे। असंभव की किताबों पर जय का चक्रवर्ती निनाद करने वाले मानवता के स्वयंसेवक थे। उनकी स्मृतियों को नमन। अटल जी को कोटि-कोटि नमन।
- अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष

Full Text: मोदी का अटल को समर्पित ब्लॉग

मेरे अटल जी
अटल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं। 
वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं। जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है।
कभी सोचा नहीं था, कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था। सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।
हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत आत्माओं ने जन्म लिया है। देश की आज़ादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है। 

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था - बाकी सब का कोई महत्त्व नहीं। इंडिया फर्स्ट – भारत प्रथम, ये मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था। सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे, हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद। 
काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था। इसलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गयी तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।
अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। “आंधियों में भी दीये जलाने” की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें महारत हासिल थी।
राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया। लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे। 

जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया। वे कहते थे, “हम केवल अपने लिए ना जीएं, औरों के लिए भी जीएं...हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी”
देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे। वे कहते थे “गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता”। करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्व स्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था।
आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी। वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे - स्वप्न दृष्टा थे लेकिन कर्म वीर भी थे। कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं। जहाँ-जहाँ भी गए, स्थाई मित्र बनाये और भारत के हितों की स्थाई आधारशिला रखते गए। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे।
अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था बल्कि जीवन शैली थी। वे देश को सिर्फ एक भूखंड, ज़मीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। “भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।” यह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को देश हमेशा याद रखेगा।
राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनुकूल अटल रही। भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में। उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना। भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंद-बूंद को, पवित्र और पूजनीय माना। 
जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली उतना ही अधिक वह ज़मीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया। प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा,

“हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना।
गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना”


अपने देशवासियों से इतनी सहजता और सरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग पायदान पर खड़ा करती है।
वे पीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे- “देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोए।” उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए।
यदि भारत उनके रोम रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। इसी वजह से हिरोशिमा जैसी कविताओं का जन्म हुआ। वे विश्व नायक थे। मां भारती के सच्चे वैश्विक नायक। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध। 
कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, “यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है।”
अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है। यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है।
नए भारत का यही संकल्प, यही भाव लिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं।

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- नरेंद्र मोदी








Sunday 12 August 2018

मेरठ में अमित शाह ने दिया '73 प्लस' का नारा

दो दिवसीय कार्यसमिति की बैठक को संबोधित किया भाजपा अध्यक्ष ने 

मेरठ: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश में नहीं रहने दिया जायेगा। शाह ने यहां सुभारती विश्वविद्यालय के शहीद मातादीन वाल्मीकि परिसर में दो दिवसीय प्रदेश कार्यसमिति के समापन सत्र में कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश में नहीं रहने दिया जाएगा लेकिन शरणाॢथयों को पूरा सम्मान तथा नागरिकता मिले, इसके लिए हम संकल्पबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि हमें देश में रहने वाले ङ्क्षहदू और मुसलमान दोनों की ङ्क्षचता है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेन्द्र यादव और प्रदेश अध्यक्ष डॉ.महेन्द्र नाथ पांडेय ने शाम को एक होटल में प्रदेश कार्यसमिति के समापन सत्र में शाह द्वारा दिए गए भाषण के बारे में जानकारी दी। इस बैठक में मीडिया को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी।

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने बताया कि शाह ने कार्यकर्ताओं से साफ कहा कि विपक्ष से कैसे निपटना है, इसकी ङ्क्षचता पार्टी पर छोड़ दीजिए। शाह ने कहा कि आप मोदी-योगी सरकार की योजनाओं को नीचे तक लेकर जाइए। आप लोग गली मोहल्लों तक पहुंचें। यदि आप लोग चट्टान की तरह खड़े होकर रहेंगे तो जीत निश्चित है। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन पार्टी के लिए कोई चुनौती नहीं है। उन्होंने यह भी साफ किया कि भाजपा तुष्टिकरण की नहीं बल्कि विकास की राजनीति करेगी। अगला चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को केन्द्र में रखकर लड़ा जायेगा। उन्होंने '73 प्लस' का नारा दिया है।


मेरठ जाते समय जोरदार स्वागत हुआ भाजपा अध्यक्ष का। 
शाह ने कहा कि लोग पूछते हैं कि सपा-बसपा एक हो गई तो क्या होगा। मैं कहता हूं कि उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा, कांग्रेस सबको हम एक साथ हरा चुके हैं। जब 2017 में हम चुनाव लड़े थे तो दो लड़कों ने हाथ मिलाया था लेकिन हमने 300 से अधिक सीटें जीती। इस बार तीनों मिल जाएंगे तो भी हम 74 से कम सीटें नहीं जीतेंगे। उत्तर प्रदेश की कार्यसमिति की बैठक के दूसरे और अंतिम दिन आज पार्टी की तरफ से राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया गया। इस प्रस्ताव में भाजपा ने प्रदेश की योगी और केंद्र की मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए यह दावा किया है कि प्रदेश सुरक्षित हाथों में है।
कार्यसमिति की बैठक में जारी राजनीतिक प्रस्ताव में कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर योगी सरकार की सराहना की गई। 'एक जिला एक उत्पाद' को लेकर पार्टी ने योगी सरकार की खूब तारीफ की है। इससे पहले भाजपा के युवा संगठन के पश्चिम प्रभारी विजय बहादुर पाठक ने संवाददाता सम्मेलन कर संगठन की कार्य योजना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 2019 के चुनाव के लिए पार्टी ने पूरा रोडमैप तैयार किया है। 16 से 30 अगस्त के बीच उत्तर प्रदेश के सभी एक लाख 60 हजार बूथों पर बनाई गई भाजपा की बूथ कमेटी के पदाधिकारी बारीकी से समीक्षा करेंगे। उन्होंने पार्टी के कार्यक्रम की जानकारी देते हुए बताया कि एक सितंबर से 15 सितंबर के बीच सभी 80 लोकसभा सीटों पर संचालन टोलियों की बैठक होगी। जो मतदाता छूट गए हैं उन सभी के 30 सितंबर तक अभियान चलाकर वोट बनवाए जाएंगे।

अमित शाह की कोलकाता रैली देखें-

उन्होंने बताया कि 15 अगस्त को भारतीय जनता पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता 11-11 पौधे लगाएंगे। 16 अगस्त को किसान मोर्चा की तरफ से स्वतंत्रता सेनानियों उनके परिवारों और शहीदों के परिजनों को सम्मानित किया जाएगा। 17 अगस्त को भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ता तिरंगे के साथ प्रभात फेरी निकालेंगे और 18 अगस्त को सभी जिलों में देशभक्ति पर आधारित कवि सम्मेलन का आयोजन महिला मोर्चा द्वारा कराया जाएगा।

Wednesday 8 August 2018

VIDEO: जैन मुनि नयन सागर का वीडियो, कितना सच कितना झूठ ?

मुजफ्फरनगरः जैन मुनि नयन सागर महाराज के एक युवती (26) के साथ तथाकथित संबंधों की कहानी बयां करते वीडियो अब इतने वायरल हो चुके हैं और इसमें इतने पेंच आ चुके हैं कि क्या सच है क्या गलत  यह पता नहीं चल पा रहा है। वहलना जैसे अतिशय क्षेत्र को जैन समाज की अंदरुनी राजनीति के लिए तो जाना ही जाता है लेकिन यह गुटबाजी इस कदर आगे बढ़ जाएगी यह किसी ने नहीं सोचा था। नयन सागर महाराज के समर्थक आरोप लगा रहे हैं कि यह कुछ लोगों की साजिश है। जबकि वी़डियो यह बताता है कि जैन मुनि की गतिविधियां भी संदिग्ध तो थी ही। जैन मुनि का कहना है कि उनसे पैसा ऐंठने के लिए कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं लेकिन वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि जैन मुनि की हरकत तो संदिग्ध है ही।

देखिए और खुद ही अंदाजा लगाइये-

1. पहला वीडियो 23 जून 2018 की शाम 7.26 मिनट का है। इसमें पहले जैन मुनि को वहलना स्थित अपने कमरे के बरामदे में बैठे दिखाया गया है। वे गर्मी से पसीने पोंछ रहे हैं। तभी यह युवती (खतौली निवासी) आती है और अपने कमरे में चली जाती है। फिर दरवाजे से उसका हाथ बाहर आता है और वह जैन मुनि को अंदर आने का इशारा करती है। जैन मुनि इधर-उधर देखते हैं और उसके कमरे में चले जाते हैं। देखिए यह वीडियो-


2. दूसरी वीडियो उसी रात यानी 24 जून 2018 की सुबह 1.12 बजे का है। इसमें कैमरे का एंगल दूसरा है। यह साफ नहीं है कि कमरा वही है जिसमें वे शाम को घुसे थे या दूसरा है? इसमें जैन मुनि 1.13 बजे चुपके से बाहर निकलते हैं और दबे पांव चले जाते हैं। फिर वह युवती (जो अब नाइटी पहने हुए है) बाहर आती है और अंदर चली जाती है। देखिए वीडियो-

इन दो वीडियो से तहलका मचा है। जैन मुनि का कहना है कि उनसे पैसा मांगा गया इस वीडियो को दबाने के लिए। जब वे नहीं माने तो मलेशिया से किसी नंबर से इसे व्हाट्स एप्प पर जारी कर दिया गया। एक मोड़ यह भी आया कि युवती के पिता ने पुलिस में रिपोर्ट कर दी कि जैन मुनि ने उसकी बेटी का अपहरण किया है लेकिन यह बात गलत साबित हुई और युवती ने पुलिस के सामने बयान दे दिया कि यह सब गलत है और जैन मुनि एकदम पाक साफ हैं। युवती के परिजनों का कहना है कि उन्हें इस पर यकीन नहीं है और युवती दबाव में है। युवती ने अपना बयान देते हुए भी एक वीडियो जारी किया लेकिन उस पर भी कोई यकीन नहीं कर रहा है। बहरहाल यह मामला गरमा रहा है। सही क्या है कोई नहीं जानता।