Monday 29 January 2018

Exclusive: पैसे के खेल में बसपा से निकाले गए अनिल कुमार

मुजफ्फरनगरः पुरकाजी के पूर्व विधायक अनिल कुमार के बसपा से निष्कासन के पीछे पैसे का खेल बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों बसपा प्रमुख मायावती के जन्मदिन के मौके पर सभी पार्टी नेताओं को पार्टी फंड में पैसा जमा कराने के लिए कहा गया था। अनिल कुमार को भी 11 लाख रुपये जमा करने थे लेकिन वे नहीं दे पाए। मुख्य वजह तो यही बताई जा रही है उन्हें पार्टी से निकाले जाने के पीछे। बताया जाता है कि बसपा के पूर्व राज्यसभा सांसद राजपाल सैनी पर भी पार्टी से निलंबन की कार्रवाई की जा सकती है। उन्हें भी पार्टी फंड में 25 लाख रुपये देने थे लेकिन वे नहीं दे पाए।

बसपा संकट के दौर से गुजर रही है और ऐसे में मायावती खुद एक्शन ले रही हैं। संगठन में भारी उलटफेर किया जा रहा है। अनिल को पहले मुजफ्फरनगर का जिला प्रभारी बनाया गया था फिर शामली का और अब पार्टी से बाहर। अनिल वैसे भी पार्टी के विवादित विधायक रहे हैं। उन पर आर्थिक अनियमितताओं के आरोप लगते रहे हैं। पुरकाजी सीट से 2012 में उनका टिकट काटकर डॉ जे पी सिंह निमि को टिकट दे दिया गया था। 2007 में अनिल चरथावल से विधायक बने थे। बाद में मायावती ने अनिल को फिर से टिकट दिया तो उनसे कहा था कि वे हर्जाने के तौर पर डॉ निमि को 11 लाख रुपये देंगे लेकिन अनिल ने एक पैसा नहीं दिया। इसी तरह अनिल के पास आय से ज्यादा संपत्ति रखने के रखने के आरोप लगते रहे हैं। उनकी आलीशान कोठी पर भी सवाल उठे हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें अपने साथ लगातार बनाए रखा। 2017 में वे चुनाव भी पुरकाजी से हार गए लेकिन बसपा में बने रहे। पिछले दिनों मायावती ने संगठन में बदलाव किए तो अनिल को लेकर कयास लगते रहे और अंततः पार्टी से ही उन्हें निकाल दिया गया। हालांकि अनिल ने अपने निलंबन पर आश्चर्य जताया था।

फिलहाल निलंबन की तलवार राजपाल सैनी पर लटक रही है। सैनी राज्यसभा सांसद रहे हैं और उनके बेटे शिवान सैनी को खतौली से बसपा ने 2017 में टिकट भी दिया था लेकिन वे हार गए। बताया जाता है कि राजपाल सैनी का निलंबन केवल इसलिए लटक गया है क्योंकि मायावती अभी पिछड़े नेताओं को निकालने के बाद पैदा होने वाली नाराजगी नहीं झेलना चाहती। धर्म सिंह सैनी (सहारनपुर) व स्वामी प्रसाद मौर्य पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं और भाजपा के साथ हैं।

Thursday 25 January 2018

EXCLUSIVE: अनुराधा चौधरी को हाईकमान से मिल गया है इशारा ?

मुजफ्फरनगरः लोकसभा चुनाव में एक साल का ही समय शेष रह गया है और टिकट की उम्मीद रखने वालों ने अपना काम यानी मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया है। राजनीति में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हर चुनाव में कुछ न कुछ दरकार होता है। वे भले ही हारें या जीतें लेकिन उन्हें तो मैदान में ही रहना है। टिकट कहीं से भी मिले लेकिन उन्हें चुनाव तो लड़ना ही है। ऐसे लोगों ने जनसंपर्क और गणेश परिक्रमा शुरू कर दी है। लेकिन इन नामों में सबसे अलग नाम है अनुराधा चौधरी का। वे 2009 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव हारी तो जैसे लाइम लाइट से ही बाहर हो गई। उनकी तत्कालीन पार्टी रालोद में ही उनकी सुनवाई कम होने लगी और 2012 के विधानसभा चुनाव आते-आते उन्हें पार्टी को छोड़कर चले जाना पड़ा। अनुराधा ने उस समय समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। सपा की सरकार बनी और अखिलेश सीएम। अनुराधा को वेस्ट यूपी में जाट चेहरे के रूप में देखते हुए अखिलेश ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए लाल बत्ती की गाड़ी भी थमा दी। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि राज्यसभा या एमएलसी पद दिया जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में अनुराधा ने टिकट मांगा तो नहीं दिया गया। उल्टे जब सारे प्रदेश में सपा की करारी हार हुई तो उनसे लाल बत्ती भी छीन ली गई। ऐसे में अनुराधा के सामने पार्टी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। अनुराधा ने भाजपा का दामन थाम लिया और 2017 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर से टिकट मांगा लेकिन भाजपा में सक्रिय वेस्ट यूपी की जाट लॉबी संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर सांसद), सत्यपाल सिंह (बागपात सांसद व केंद्रीय मंत्री) और सतपाल मलिक (अब बिहार के राज्यपाल) आदि ने अनुराधा के टिकट का विरोध किया और वे मैदान में नहीं नजर आईं।
अब फिर वे मैदान में नजर आ रही हैं तो इसके कई तरह से विश्लेषण किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि हाईकमान से अनुराधा को इशारा मिल चुका है कि वे सक्रिय रहें और पार्टी उनके बारे में गंभीरता से सोच रही है। कहा जा रहा है कि केंद्र में अनुराधा ने अपनी घुसपैठ बनाई है और अब कुछ समर्थक उनके भी पैदा हो गए हैं पार्टी में। कैराना के सांसद बाबू हुकुम सिंह के स्वास्थ्य को लेकर दिक्कतें चल ही रही हैं। 85 साल पार कर चुके हुकुम सिंह स्वस्थ भी रहे तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। वे पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका आखरी चुनाव है। वे अपनी विरासत बेटी मृगांका सिंह को हस्तांतरित करना चाहते हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में मृगांका को कैराना सीट पर करारी हार झेलनी पड़ी। ऐसे में वे लोकसभा टिकट की भी प्रबल दावेदार बन पाएंगी इसमें संदेह है। कैराना में भाजपा को नए चेहरे की तलाश होगी। अनुराधा कैराना से 2004 में (रालोद-सपा) सांसद रह चुकी हैं। पर सवाल यह है कि क्या अनुराधा कैराना से लड़ना चाहेंगी? अनुराधा के करीबियों का कहना है कि उनकी इच्छा मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने की है। पर यहां पहले से संजीव बालियान के रूप में एक चेहरा भाजपा के पास है। हालांकि संजीव बालियान बतौर सांसद अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे हैं लेकिन फिर भी वे वर्तमान सांसद हैं और पहला हक उनका ही बनेगा टिकट पर। ऐसे में अनुराधा के लिए यह तय करना बहुत कठिन होगा कि वे कहां से चुनाव लड़ें। लेकिन इतना तय है कि वे सक्रिय हो चुकी हैं और उन्हें हाईकमान में बैठे बड़े नामों से सहमति भी मिल चुकी है। 

अनुराधा लगातार सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय हैं। तमाम भाजपा नेता उनके घर पर हाजिरी लगाते नजर आ रहे हैं। इनमें पूर्व जिलाध्यक्ष व जिला महामंत्री जैसे लोग भी हैं। कई भाजपा सभासद तो लगातार अनुराधा कैंप से जुड़ रहे हैं। यानी अंबा विहार में मौजूद अनुराधा की कोठी पर फिर से बहार आ रही है।

Friday 12 January 2018

हुकुम सिंह की वजह से आलम शामिल हुए हैं रालोद में !

मुजफ्फरनगर/शामलीः जिले की राजनीति में एक चतुर चालाक राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी छवि रखने वाले पूर्व सांसद अमीर आलम खां व उनके बेटे पूर्व विधायक नवाजिश आलम खां ने अब रालोद का दामन थाम लिया है। दल बदलने में माहिर आलम का इरादा सब लोग भांप गए हैं। अब वे 2019 में कैराना लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वे खुद चुनाव लड़ेंगे या बेटे को लडवाएंगे यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन यह सही है कि इसके अलावा रालोद में आने की उनके पास कोई दूसरी वजह नहीं है। सपा व बसपा में उनके लिए दरवाजे बंद हो चुके हैं।

दरअसल कैराना लोकसभा सीट से वर्तमान भाजपा सांसद हुकुम सिंह की यह राजनीति में आखिरी पारी है। वे 75 साल की आयु पार कर चुके हैं और पहले ही कह चुके हैं कि अब सक्रिय राजनीति से दूर जा रहे हैं। यही वजह है कि उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में बेटी मृगांका सिंह को टिकट दिलवाया था और अपनी विरासत बेटी को सौंपने की कोशिश की, लेकिन वह जीत नहीं सकी और सपा प्रत्याशी नाहिद हसन (पूर्व सांसद मरहूम मुनव्वर हसन के बेटे) से हार गई। नाहिद अब सपा के विधायक हैं और बहुत कम उम्मीद है कि 2019 में वे लोकसभा चुनाव लड़ें। ऐसे में आलम को कैराना सीट सेफ नजर आ रही है। यहां जाट व मुस्लिम समीकरण की वजह से वे 1999 में भी रालोद के टिकट पर सांसद चुने गए थे। आलम तीन बार थानाभवन सीट से विधायक भी रहे हैं और ज्यादातर जीत उन्हें रालोद के टिकट पर ही मिली हैं।


आलम के साथ पिछले लोकसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक होने का टैग जुड़ गया था। 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे में उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठते रहे हैं। 2012 में उनके बेटे नवाजिश आलम बुढ़ाना से सपा विधायक बने थे लेकिन पांच साल पूरे होने से पहले ही उन्होंने बसपा में जुगाड़ भिड़ाना शुरू कर दिया था। बाद में नवाजिश ने मीरापुर से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और हार गए थे। अब ऐसे में बाप बेटा न सपा के रहे न बसपा के। अब उनके सामने रालोद में ही जाने का चारा बचा था। देखना यह है कि बसपा, भाजपा व सपा कैसे उनकी कैराना में किलेबंदी करते हैं।

अमीर आलम का राजनीतिक सफर - 1985 में लोकदल के टिकट पर थानाभवन से विधायक
- 1989 में जनता दल से मोरना क्षेत्र से विधायक
- 1991 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में परिवहन राज्य मंत्री बने
- 1996 में सपा के टिकट पर थानाभवन से विधायक बने
- 1999 में रालोद प्रत्याशी के रूप में कैराना से सांसद बने
- 2006 में सपा की ओर से राज्य सभा सदस्य बनाए गए



Monday 8 January 2018

मेरठ में वंदेमातरम को लेकर निगम बैठक में हंगामा

मेरठः  मेरठ में निगम पार्षदों की बोर्ड मीटिंग के दौरान जमकर हंगामा हुआ। दोनों पक्षों की ओर से तीखे संवाद हुए। बाद में पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत किया गया। विवाद की शुरुआत तब हुई जब बीएसपी पार्षदों ने वंदे मातरम् गाने की बजाए इसका ऑडियो चला दिया। इस पर भाजपा पार्षद नाराज हो गए। बोर्ड मीटिंग में ही बसपा पार्षदों के खिलाफ नारेबाजी की। पूरी घटना का वीडियो न्यूज एजेंसी एएनआई ने भी जारी किया है। इसमें दोनों पक्षों के बीच चल रही तीखी बहस को साफतौर पर देखा जा सकता है। सोमवार को हुए हंगामे के समय भाजपा के मेरठ सांसद राजेंद्र अग्रवाल भी मौजूद थे। 
बता दें कि वंदे मातरम् गायन को लेकर मेरठ नगर निगम में इससे पहले भी हंगामा हो चुका है। हाल के दिनों में चुनकर आईं बीएसपी की मेयर सुनीता वर्मा वंदे मातरम गायन के दौरान  अपनी सीट पर बैठी हुई देखी गईं। इस पर भाजपा के पार्षदों ने उनके खिलाफ जमकर नारेबाजी की। बाद में इस पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा था कि यहां विवाद का कोई कारण नहीं होना चाहिए क्योंकि सिर्फ राष्ट्रीय गान ‘जन गण मन’ बोर्ड मीटिंग से पहले बजाया जाएगा। हालांकि इससे पहले मेरठ के भाजपा मेयर रहे हरिकांत अहलुवालिया ने राष्ट्रीय गीत एमएमसी की बोर्ड मीटिंग से पहले बजाने को जरूरी घोषित किया था। तब यह भी कहा गया था कि जो इससे इंकार करेगा उसे टर्मिनेट कर दिया जाएगा।