Thursday 25 January 2018

EXCLUSIVE: अनुराधा चौधरी को हाईकमान से मिल गया है इशारा ?

मुजफ्फरनगरः लोकसभा चुनाव में एक साल का ही समय शेष रह गया है और टिकट की उम्मीद रखने वालों ने अपना काम यानी मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया है। राजनीति में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें हर चुनाव में कुछ न कुछ दरकार होता है। वे भले ही हारें या जीतें लेकिन उन्हें तो मैदान में ही रहना है। टिकट कहीं से भी मिले लेकिन उन्हें चुनाव तो लड़ना ही है। ऐसे लोगों ने जनसंपर्क और गणेश परिक्रमा शुरू कर दी है। लेकिन इन नामों में सबसे अलग नाम है अनुराधा चौधरी का। वे 2009 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव हारी तो जैसे लाइम लाइट से ही बाहर हो गई। उनकी तत्कालीन पार्टी रालोद में ही उनकी सुनवाई कम होने लगी और 2012 के विधानसभा चुनाव आते-आते उन्हें पार्टी को छोड़कर चले जाना पड़ा। अनुराधा ने उस समय समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। सपा की सरकार बनी और अखिलेश सीएम। अनुराधा को वेस्ट यूपी में जाट चेहरे के रूप में देखते हुए अखिलेश ने उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए लाल बत्ती की गाड़ी भी थमा दी। हालांकि उन्हें उम्मीद थी कि राज्यसभा या एमएलसी पद दिया जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में अनुराधा ने टिकट मांगा तो नहीं दिया गया। उल्टे जब सारे प्रदेश में सपा की करारी हार हुई तो उनसे लाल बत्ती भी छीन ली गई। ऐसे में अनुराधा के सामने पार्टी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। अनुराधा ने भाजपा का दामन थाम लिया और 2017 के विधानसभा चुनाव में बिजनौर से टिकट मांगा लेकिन भाजपा में सक्रिय वेस्ट यूपी की जाट लॉबी संजीव बालियान (मुजफ्फरनगर सांसद), सत्यपाल सिंह (बागपात सांसद व केंद्रीय मंत्री) और सतपाल मलिक (अब बिहार के राज्यपाल) आदि ने अनुराधा के टिकट का विरोध किया और वे मैदान में नहीं नजर आईं।
अब फिर वे मैदान में नजर आ रही हैं तो इसके कई तरह से विश्लेषण किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि हाईकमान से अनुराधा को इशारा मिल चुका है कि वे सक्रिय रहें और पार्टी उनके बारे में गंभीरता से सोच रही है। कहा जा रहा है कि केंद्र में अनुराधा ने अपनी घुसपैठ बनाई है और अब कुछ समर्थक उनके भी पैदा हो गए हैं पार्टी में। कैराना के सांसद बाबू हुकुम सिंह के स्वास्थ्य को लेकर दिक्कतें चल ही रही हैं। 85 साल पार कर चुके हुकुम सिंह स्वस्थ भी रहे तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। वे पहले ही कह चुके हैं कि यह उनका आखरी चुनाव है। वे अपनी विरासत बेटी मृगांका सिंह को हस्तांतरित करना चाहते हैं लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में मृगांका को कैराना सीट पर करारी हार झेलनी पड़ी। ऐसे में वे लोकसभा टिकट की भी प्रबल दावेदार बन पाएंगी इसमें संदेह है। कैराना में भाजपा को नए चेहरे की तलाश होगी। अनुराधा कैराना से 2004 में (रालोद-सपा) सांसद रह चुकी हैं। पर सवाल यह है कि क्या अनुराधा कैराना से लड़ना चाहेंगी? अनुराधा के करीबियों का कहना है कि उनकी इच्छा मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने की है। पर यहां पहले से संजीव बालियान के रूप में एक चेहरा भाजपा के पास है। हालांकि संजीव बालियान बतौर सांसद अपनी छाप छोड़ने में विफल रहे हैं लेकिन फिर भी वे वर्तमान सांसद हैं और पहला हक उनका ही बनेगा टिकट पर। ऐसे में अनुराधा के लिए यह तय करना बहुत कठिन होगा कि वे कहां से चुनाव लड़ें। लेकिन इतना तय है कि वे सक्रिय हो चुकी हैं और उन्हें हाईकमान में बैठे बड़े नामों से सहमति भी मिल चुकी है। 

अनुराधा लगातार सामाजिक कार्यक्रमों में सक्रिय हैं। तमाम भाजपा नेता उनके घर पर हाजिरी लगाते नजर आ रहे हैं। इनमें पूर्व जिलाध्यक्ष व जिला महामंत्री जैसे लोग भी हैं। कई भाजपा सभासद तो लगातार अनुराधा कैंप से जुड़ रहे हैं। यानी अंबा विहार में मौजूद अनुराधा की कोठी पर फिर से बहार आ रही है।

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