Tuesday 6 February 2018

संजीव बालियान की रातों की नींद क्यों उड़ी ?

भाग- 1

मुजफ्फरनगरः
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट को लेकर 2019 के चुनाव से एक साल पहले ही जबर्दस्त उठापटक का दौर शुरू हो गया है। किसे टिकट मिलेगा या किसका कटेगा, इसे लेकर भारी अटकलों का दौर चल रहा है। वर्तमान सांसद संजीव बालियान का टिकट कटने की खबर बच्चे-बच्चे की जुबान पर पहले से ही है। वैसे भी मुजफ्फरनगर का इतिहास रहा है कि जो भी जाट नेता यहां से जीतकर पहली ही बार में मंत्री बन गया उसका ग्राफ नीचे आने में देर नहीं लगी। भाजपा के नेता सुधीर बालियान, बसपा के योगराज सिंह इसके कुछ उदाहरण है। संजीव भी उसी लाइन पर चलते नजर आ रहे हैं।

हालांकि उनके समर्थक अभी भी मानते हैं कि संजीव को ही टिकट मिलेगा, लेकिन अनुराधा चौधरी के अचानक सक्रिय हो जाने से संजीव समर्थकों में बेचैनी है। इसके अलावा बुढ़ाना के विधायक उमेश मलिक ने भी संघ के माध्यम से टिकट मांगने की मुहीम शुरू कर दी है। हालांकि उमेश मलिक के बारे में कहा जाता है कि वे संजीव समर्थक हैं लेकिन यह भी सब जानते हैं कि वे लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं।

संजीव को अगर टिकट मिल भी गया तो उनका चुनाव इस बार आसान नहीं होगा। सुनने में आ रहा है कि रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह इस बार मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने का इरादा जता रहे हैं। यहां जाट मतों की संख्या 2 लाख के आसपास है। जाटों का रुझान फिर से रालोद की ओर हो रहा है। इसके अलावा बसपा से इस बार राजपाल सैनी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अगर यह हुआ तो वे भाजपा के मतों में हीं सेंध मारेंगे। दलित, सैनी कट जाएंगे जो भाजपा का नुकसान है। 2014 में दलितों ने भी भाजपा को वोट दिया था। बसपा से कादिर राणा मैदान में थे इसलिए दलित वोट (मुजफ्फरनगर दंगे से उपजे माहौल की वजह से) बसपा से छिटककर भाजपा को चले गए थे और संजीव 4 लाख के बड़े अंतर से जीते थे। पर इस बार अजित और राजपाल लड़े तो जाट, सैनी व दलित मत कट जाएंगे। ऐसे में संजीव के पास कुछ बचेगा नहीं।


वैश्य, ठाकुर व अन्य हिंदू बिरादरियां संजीव से नाराज हैं। उनके बारे में राय बन रही है कि वे केवल जाटों से घिरे रहते हैं और उनके काम ही करते हैं। विकास कार्य भी जाट इलाकों में हो रहे हैं। फिलहाल तो संजीव बालियान के लिए मुश्किल ही मुश्किल नजर आ रही हैं।

(जारी)

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