Tuesday 20 December 2016

भाकियू जन जागरण अभियान चलाएगी :राकेश टिकैत

गेहूं से आयात शुल्क समाप्त किये जाने से उत्तर भारत का किसान होगा बर्बाद : लाखोवाल

नई दिल्ली: भारतीय किसान यूनियन के पंजाब प्रांत के अध्यक्ष अजमेर सिंह लाखोवाल ने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के चलते भारत अत्यधिक सब्सिडी युक्त सस्ते खाद्यान्न आयात का हब बनता जा रहा है। इससे घरेलू स्तर पर खेती करने वाले किसानों को उनकी फसलों का उत्पादन लागत के बराबर भी मूल्य नहीं मिल पा रहा है। किसान सस्ते में अपनी फसलें बेचने को मजबूर हैं। किसानों पर कर्ज का भार बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते किसान आत्महत्या कर रहें हैं। भारत सरकार का गेंहू से आयात शुल्क समाप्त किये जाने के फैसले से किसान बड़ी असमंजस की स्थिति में है। यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब किसान लगभग अपनी गेंहू की बुवाई समाप्त कर चुका है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा गेहूं का 9.35 करोड टन उत्पादन का दावा किया गया है। इसके उलट अगर उत्पादन कुछ कम भी होता है तो यह उत्पादन घरेलू मांग 8.70 के लिए पर्याप्त है। ऐसी स्थिति में गेंहू आयात का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि इस आयात से गेहंू का किसान लम्बे समय तक परेशानियों से घिर जायेगा। इस निर्णय से आस्ट्रेलियन व्हीट बोर्ड को लाभ होगा। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सस्ती गेहूं की कीमत का हवाला देकर इस फैसले को तर्कसंगत ठहराया जा रहा है, जबकि इसकी हकीकत कुछ ओर है। उन्होंने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि वहां का किसान सस्ता गेहूं बेच रहा है। वहां पर किसानों को कैश में सरकार द्वारा भारी सब्सिडी उपलब्ध करायी जाती है। जिसके कारण वहां के किसानों की आजीविका सुरक्षित है। हमारें देश में सरकार द्वारा किसानी को बचाये रखने के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। आयात हमेशा उत्पादन पर प्रभाव डालता है। सस्ते आयात के चलते देश की आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा दोनों समाप्त हो जाती है। भारत में खाद्य तेलों के सस्ते आयत के कारण आज नारियल, सूरजमुखी, सरसों के किसानों का उत्पाद समर्थन मूल्य पर भी नहीं दिख रहा है। इस आयात से किसान प्रतिस्पर्धा से बाहर होकर खेती छोडऩे को मजबूर हो रहे हैं। अजमेर सिंह लाखोवाल ने कहा कि पिछले 20 वर्षों से भारत में हो रहे व्यापार उदारीकरण से सबसे गम्भीर प्रभाव तिलहन और दलहन के किसानों पर देखने को मिले हैं। उपभोक्ता अब सस्ते के कारण स्वास्थ्य के अलाभकारी ताड़ का तेल जैसे खाद्य तेल को भी इस्तेमाल करने लगे हैं।

उन्होंने कहा कि पामोलीन तेल के आयात को वर्ष 1994 में खुले सामान्य लाईसेंस की श्रेणी में डालकर खाद्य तेल के आयात के ऊपर से राज्य का एकाधिकार समाप्त कर दिया गया। भारत के बाजार को पामोलीन और सोयाबीन तेल से भर दिया गया। एकाएक भारत खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता से बड़ा आयातक देश में बदल गया। अजमेर सिंह लाखोवाल ने कहा कि अत्यधिक सब्सिडी युक्त आयात से देश के किसानों की आजीविकाएं संकट में हैं। जिसका उदाहरण दलहन, तिलहन, शुगर है। रॉ शुगर के भारी मात्रा में आयात के कारण पिछले 5 वर्षो से न तो उनकी फसलों का उचित मूल्य मिल पाया और न हीं समय से देश के गन्ना किसानों का भुगतान हो पाया।
भारतीय किसान यूनियन गेहूं से आयात शुल्क समाप्त किये जाने का विरोध करती है और भारत सरकार से मांग करती है कि इस निर्णय को वापिस लेकर तुरंत गेहूं पर 40 प्रतिशत आयात शुल्क लागू किया जाए।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने कहा कि 2008 से आज तक लाखों हजार करोड रूपये की छूट भारत सरकार द्वारा टैक्स के माध्यम से औद्योगिक घरानों को दे चुकी है। बैंकों द्वारा भी 8.5 लाख करोड़ रूपये का उद्योगों का खराब कर्जा माफ किया जा चुका है। लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण आत्महत्या कर रहे किसानों का सरकार को कोई ध्यान नहीं है। भारतीय किसान यूनियन मांग करती है कि किसानों का भी एक लाख करोड़ रूपये का कर्ज अविलम्ब माफ किया जाए। भाकियू इसके लिए देशभर में जन जागरण व आन्दोलन करेगी।
भाकियू के राष्ट्रीय महासचिव चै. युद्धवीर सिंह ने कहा कि नोटबंदी से किसानों की आजीविका पर बहुत बुरा प्रभाव पडा है। किसानों को अपना उत्पाद कम कीमतों व उधार में बेचना पड़ रहा है। कोपरेटिव बैंक व सहकारी समितियों में कैश ना होने के कारण उन्हें बेची गयी फसलों का भुगतान भी नहीं मिल पर रहा है। जिससे किसानों द्वारा बोई गयी फसलों के उत्पादन के प्रभावित होने की भी संभावना बनी हुई है। पैसे न होने के कारण मजदूर भी नहीं मिल पर रहे हैं।दूसरी तरफ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र का किसान सूखे की चपेट में है। उनकी लगाई गयी फसलें भी पूर्णत: नष्ट हो चुकी है। लेकिन सरकार द्वारा कोई राहत नहीं गयी है। भाकियू मांग करती है कि किसानों को अपना जीवन चलाने हेतु अविलम्ब 25 हजार रूपये एकड़ की सहायता राशि उपलब्ध करायी जाए। भारतीय किसान यूनियन उपरोक्त विषयों पर जनपद एवं राज्य स्तर पर जन जागरण अभियान चलाकर आन्दोलन के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाने का कार्य करेगी। अगर इन विषयों का समाधान सरकार द्वारा समय रहते नहीं किया जाता तो देश भर के सभी राज्यों के किसान मार्च में दिल्ली में जंतर मंतर पर सरकार के खिलाफ बड़ा विरोध प्रदर्शन करेगी।

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