फूलपुर व गोरखपुर सीटें सपा के खाते में गई थी। सपा राज्यसभा चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी अंबेडकर का समर्थन कर रही है। फरवरी में वेस्ट यूपी के दिग्गज भाजपा नेता बाबू हुकुम सिंह के निधन के बाद कैराना लोकसभा सीट खाली हो गई थी। अब 2019 के आम चुनाव से पहले यूपी में कैराना ही एकमात्र लोकसभा सीट है जहां पर उपचुनाव होने जा रहा है।
हालांकि बसपा कभी उपचुनाव नहीं लड़ती है लेकिन सुनने में आया है कि मायावती ने अखिलेश यादव की परीक्षा लेने के लिए कैराना से अपना प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। यहां ये भी जान लेना जरूरी है कि हुकुम सिंह से पहले कैराना (शामली जिला) से सांसद बसपा की तबस्सुम बेगम ही थी। बेगम ने खुद को सक्रिय राजनीति से दूर करते हुए बेटे नाहिद हसन को कमान सौंप दी है। नाहिद सपा के बैनर पर कैराना से दो बार लगातार विधायक बन चुके हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद की तस्वीर-कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना व शामली विधानसभा सीटों के अलावा निकटवर्ती सहारनपुर जिले के गंगोह व नकुड़ विधानसभा सीटें भी आती हैं। यहां कैराना को छोड़कर बाकी पर भाजपा के विधायक हैं। अगर वोटों का समीकरण देखें तो इन सीटों पर भाजपा को 2017 में 4.33 लाख वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशियों को 2.08 लाख व सपा के 3 प्रत्याशियों को 1.6 लाख वोट मिले थे। सपा ने शामली व नकुड़ सीटें कांग्रेस को दे दी थी। अब बसपा दम भर रही है कि सपा के समर्थन से वह सीट निकाल सकती है।
विधानसभा चुनाव के बाद की तस्वीर-कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना व शामली विधानसभा सीटों के अलावा निकटवर्ती सहारनपुर जिले के गंगोह व नकुड़ विधानसभा सीटें भी आती हैं। यहां कैराना को छोड़कर बाकी पर भाजपा के विधायक हैं। अगर वोटों का समीकरण देखें तो इन सीटों पर भाजपा को 2017 में 4.33 लाख वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशियों को 2.08 लाख व सपा के 3 प्रत्याशियों को 1.6 लाख वोट मिले थे। सपा ने शामली व नकुड़ सीटें कांग्रेस को दे दी थी। अब बसपा दम भर रही है कि सपा के समर्थन से वह सीट निकाल सकती है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे-
आंकड़ों में थोड़ा और पीछे जाएं तो 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना सीट पर हुकुम सिंह ने 56590 लाख वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर सपा के नाहिद हसन (329081), तीसरे पर बसपा के कंवर हसन (160414) व चौथे स्थान पर रालोद के करतार सिंह भड़ाना (42706) रहे थे। हालांकि हुकुम सिंह को हराने के लिए अजित सिंह ने गुर्जर प्रत्याशी को मैदान में उतारा था लेकिन वे ज्यादा वोट नहीं काट सके और मुस्लिम मतों में विभाजन का फायदा उठाकर हुकुम सिंह बाजी मार गए थे।
अब क्या बनेगा गणित-
कैराना लोकसभा सीट पर जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां मुस्लिम, गुर्जर, दलित व जाट मतों का बोलबाला है। हुकुम सिंह के लोकसभा में चले जाने के बाद जब कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो नाहिद हसन सपा से विधायक चुन लिए गए थे। उन्होंने हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान को हराया था। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में नाहिद ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को हराया था। फिलहाल बसपा में मंथन इस बात को लेकर चल रहा है कि टिकट किसे दिया जाए? कंवर हसन का विरोध उनके भतीजे नाहिद हसन (कैराना से वर्तमान सपा विधायक) ही करेंगे। चूंकि नाहिद अब सपा में जा चुके हैं तो उनकी मां तबस्सुम बेगम (कैराना की पूर्व सांसद व मरहूम सांसद मुनव्वर हसन की बेवा) को बसपा टिकट दे नहीं सकती। ऐसे में बसपा किसी नए नाम पर दांव खेल सकती हैं।
कैराना लोकसभा सीट पर जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां मुस्लिम, गुर्जर, दलित व जाट मतों का बोलबाला है। हुकुम सिंह के लोकसभा में चले जाने के बाद जब कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ तो नाहिद हसन सपा से विधायक चुन लिए गए थे। उन्होंने हुकुम सिंह के भतीजे अनिल चौहान को हराया था। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में नाहिद ने हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को हराया था। फिलहाल बसपा में मंथन इस बात को लेकर चल रहा है कि टिकट किसे दिया जाए? कंवर हसन का विरोध उनके भतीजे नाहिद हसन (कैराना से वर्तमान सपा विधायक) ही करेंगे। चूंकि नाहिद अब सपा में जा चुके हैं तो उनकी मां तबस्सुम बेगम (कैराना की पूर्व सांसद व मरहूम सांसद मुनव्वर हसन की बेवा) को बसपा टिकट दे नहीं सकती। ऐसे में बसपा किसी नए नाम पर दांव खेल सकती हैं।
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