Thursday 25 February 2016

जेल से रिहा होने के बाद संजय दत्त ने किया झंडे को सलाम और कहा- मुझे आतंकवादी न कहें

पुणे/मुंबई: बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त पांच साल की सजा में कुछ छूट मिल जाने के बाद आज यरवदा जेल से बाहर आए गए। इसके साथ ही वह वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी के तौर पर अपने विवादास्पद अतीत को पीछे छोड़ आए हैं। बाहर आने के बाद संजय दत्त ने मीडिया से बात करते हुए अपील की कि उन्हें आतंकी न कहा जाए क्योंकि वे आर्म्स एक्ट में जेल गए थे न कि मुंबई बम धमाकों में। उन्होंने कहा कि वे खुश हैं और इस देश के कानून में विश्वास करते हैं और वे यहीं जिएंगे और यहीं मरेंगे। 

नीली कमीज और जीन्स पहनकर मुस्कुराते हुए दत्त को औपचारिकताएं पूरी करने के बाद आज सुबह जेल से बाहर लाया गया। वह एक कार में बैठे, जिसे चलाकर वह सीधे लोहेगांव हवाईअड्डे चले गए जहां उन्हें मुंबई जाने के लिए चार्टेड विमान पकडऩा था। उनकी पत्नी मान्यता दत्त साथ थी। बड़े पर्दे के 56 वर्षीय 'खलनायक’ ने जेल के शीर्ष पर फहर रहे तिरंगे को सलाम किया। अपने साथ वह अपने सामान का बैग और अपनी फाइल लेकर निकले थे। संजय की पत्नी मान्यता और जाने माने फिल्मकार राजकुमार हिरानी शहर के हवाईअड्डे तक उनके साथ गए। संजू ने जेल के बाहर इंतजार कर रही कार में बैठने से पहले घरती को नमन किया। उस समय उनके हाथ में खाकी रंग का बैग और हरे रंग की फाइल थी। संजय दत्त ने पांच साल की सजा की शेष अवधि के तौर पर यरवदा जेल में 42 माह बिताए। जल्दी-जल्दी पैरोल और छुट्टी मिलते रहने के कारण उनकी जेल की सजा विवादों में घिरी रही। आलोचकों का कहना था कि उन्हें यह विशेष सुविधा उनके सेलेब्रिटी होने के कारण दी जा रही है।
जेल प्रशासन और उनके वकीलों ने इन आरोपों से यह कहकर इंकार कर दिया कि 144 दिनों की छूट और उनकी पैरोल वाली छुट्टी जेल के नियमों और नियम पुस्तिका के अनुरूप है। बॉलीवुड अभिनेता संजय दत्त को एके-56 राइफल रखने और फिर उसे नष्ट करने के कारण 19 अप्रैल 1993 को गिरफ्तार किया गया था। यह राइफल उन हथियारों और विस्फोटकों के जखीरे का हिस्सा थी, जो कि मार्च 1993 के श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों से पहले भारत में आया था। जांच और लंबे समय तक चली सुनवाई के दौरान संजय ने 18 माह जेल में बिताए। 31 जुलाई 2007 को मुंबई की टाडा अदालत ने उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत छह साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई। इसके साथ ही अदालत ने उनपर 25 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया। वर्ष 2013 में, उच्चतम न्यायालय ने फैसले को तो बरकरार रखा लेकिन सजा को घटाकर पांच साल का कर दिया। इसके बाद संजय ने अपनी बाकी की सजा काटने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया।
जेल के अधिकारियों के अनुसार, संजय को उनकी प्रकोष्ठ में कागज के लिफाफे बनाने का काम दिया गया था। जेल के सूत्रों ने कहा कि अभिनेता को बार-बार मिलने वाली पैरोल और छुट्टी बहस का मुद्दा बनी रही। संजय ने इंटरनल सर्किट जेल रेडियो के कार्यक्रमों में नियमित तौर पर भागीदारी की। कैद के दौरान उन्हें दिसंबर 2013 में 90 दिन की पैरोल दी गई। बाद में एक बार फिर 30 दिन की पैरोल मिली।



इसी बीच, संजय के स्वागत के लिए उपनगर बांद्रा स्थित उनके आवास को फूल मालाओं से सजाया गया था। उनकी इमारत 'इंपीरियल हाइट्स’ के बाहर द्वार पर संजय के दिवंगत पिता और नेता सुनील दत्त की तस्वीर भी लगाई गई थी। तस्वीर के साथ संदेश लगा था, ''दत्त साहब अमर रहें’। संजय के घर के बाहर उनके प्रशंसक बेहद उत्सुकता के साथ इंतजार करते देखे गए। इलाके में 'वेलकम बैक संजू बाबा’, 'बांद्रा के लड़के संजय दत्त के वापस आने पर बांद्रावासी उनका स्वागत करते हैं’ जैसे होर्डिंग लगाए गए थे। इनमें संजय की छोटी उम्र की तस्वीर भी लगाई गई, जिसमें वह अपनी मां के साथ नजर आ रहे हैं। संजय के आवास वाली लेन में ऐसे कई होर्डिंग लगाए गए। मुंबई पहुंचने पर संजय सीधे दक्षिण मुंबई स्थित प्रभादेवी में सिद्धिविनायक मंदिर गए। वहां प्रार्थना के बाद वह मरीन लाइंस स्थित अपनी मां (नरगिस) की कब्र पर श्रद्धांजलि देने के लिए गए ।




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