Sunday 29 November 2015

Sridevi को Boney Kapoor के घर में चाय बनाते देख क्यो चिढ़ गया ये फिल्म डायरेक्टर

नई दिल्ली: श्रीदेवी को लेकर फिल्म निर्माता-निर्देशक राम गोपाल वर्मा की चाहत भले ही ज्यादा लोगों को नहीं पता हो लेकिन वर्मा ने आत्मकथा का एक पूरा अध्याय इस हवा हवाई अभिनेत्री के प्रति उनके प्रेम पर समर्पित किया है। अपनी पुस्तक 'गन्स एंड थाइस’ में वर्मा ने श्रीदेवी को 'सुंदरता की देवी’ कहा और बताया कि वह उनके पति बोनी कपूर को माफ क्यों नहीं करेंगे।
वर्मा ने 'टाइम्स लिट फेस्ट’ के एक सत्र में श्रीदेवी के लिए अपने प्रेम को कबूल करते हुए कहा, यह प्रेमाकर्षण था, मैं बहुत उत्साहित था लेकिन यह मेरी भावना थी। किसी की किसी के भी प्रति चाहत हो सकती है, फिर चाहे वह कोई सामान्य व्यक्ति हो या सेलेब्रिटी हो, आप उस भावना का बहुत आनंद उठाते हैं यह एक तरह से लगभग नशा है। उन्होंने कहा, श्रीदेवी को बोनी कपूर की रसोई में चाय बनाते देखना बहुत निराशाजनक था। मैं उन्हें माफ नहीं करूंगा क्योंकि उन्होंने एक परी को स्वर्ग से अपने घर की रसोई में ला दिया। इसके बाद वर्मा से अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर के बारे में पूछा गया जिन्हें लेकर भी चर्चाएं रही हैं।
वर्मा ने अपनी किताब में खुलासा किया कि 'रंगीला’ बनाने का एक कारण उर्मिला की खूबसूरती को कैमरे में कैद करना था। इस फिल्म ने उर्मिला को रातोंरात सुपरस्टार बना दिया था। उन्होंने कहा, मैं ईमानदारी से महसूस करता हूं कि किरदारों के साथ घुलमिल जाना निर्देशक के लिए महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि यह उस तरह से है जैसे मैंने 'सरकार’ में अमिताभ बच्चन को शूट किया। जाहिर तौर पर वह एक महिला नहीं हैं लेकिन मुझे उनकी करीबी तस्वीरें लेना तथा उनके बहुत करीबी हावभाव को दिखाकर बहुत अच्छा लगा।

सेंसर बोर्ड खत्म किया जाए : रामगोपाल वर्मा 

राम गोपाल वर्मा का मानना है कि आज के त्वरित सूचना के दौर में सेंसर बोर्ड गैर प्रासंगिक जान पड़ता है।फिल्म प्रमाणन सेंसर बोर्ड के प्रमुख पहलाज निहलानी जेम्स बांड की नवीनतम फिल्म 'स्पेक्टर’ में चुंबन का दृश्य छोटा करने को लेकर निशाने पर आ गए हैं। वर्मा ने कहा कि वह महसूस करते हैं कि निहलानी आखिर अपना काम कर रहे हैं और यह वह निकाय ही है जिसे खत्म करने की जरूरत है। उन्होंने टाईम्स लिटफेस्ट के मौके पर कहा, आज कोई भी अपने सेलफोन से अश्लील सामग्री हासिल कर सकता है यदि उसे इच्छा हो। उस तरह की डिजिटल दुनिया में हम रहे रहे हैं, लेकिन ऐसे में चार लोग आपस बैठते हैं और वे बाकी दुनिया के लिए तय करते हैं कि उन्हें क्या देखना चाहिए और क्या नहीं, इस तरह की चीज वाकई बकवास है। उन्होंने कहा, मैं इस बात से भी सहमत हूं कि वह (पहलाज) आखिर अपना काम कर रहे हैं, दिशानिर्देशों एवं नियमों के अनुसार चल रहे हैं, मैं समझता हूं कि सेंसर बतौर तंत्र खत्म कर दिया जाए। निर्देशक सह निर्माता सेंसर बोर्ड के टीम सदस्यों के बदलने के साथ ही सेंसरशिप का स्तर बदल जाता है। उन्होंने कहा, जब 'सत्या’ का सेंसर किया गया तब पहली बार उन्होंने कुछ अभद्र शब्दों को रहने दिया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि यह बिल्कुल ही फिल्म का हिस्सा है और उसे हटा देने से फिल्म का स्वरूप में भरभरा जाएगा। यह खास चीज उन खास सदस्यों के समय हुआ। वर्मा (53) ने कहा, सदस्यों के अन्य सेट की सोच कुछ भिन्न रही। जब 'बैंडिट क्वीन’ का सेंसर किया गया तब कई कांटछांट किए गए। जब शेखर समीक्षा समिति में गए तब वे फिल्म पर पाबंदी लगाना चाहते थे। जब वह न्यायाधिकरण में गए तब उन्होंने कहा कि इसे बिना कांटछांट के जारी किया जाए। अतएव सदस्यों के तीन सेट के भिन्न भिन्न दृष्टिकोण थे। यह अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जब उनसे पूछा गया कि क्या समस्या व्यापक सरकारी नीतियां को लेकर है, वर्मा ने जवाब दिया, हां, यह कानून पुराना पड़ चुका है।



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