Sunday 4 October 2015

जाट आरक्षणः आग से खेल रहे हैं संजीव बालियान ?

वेस्ट यूपी में अजित सिंह का विकल्प बनने के लिए प्रयासरत हैं मुजफ्फरनगर के सांसद

जाट आरक्षण को लागू कराने को लेकर किए जा रहे संजीव के प्रयासों से नाराज बताए जाते हैं राजनाथ सिंह 

मुजफ्फरनगरः केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान ने एक बार फिर जाट आरक्षण की बात कही है। मेरठ में पल्लवपुरम जाट वेलफेयर एसोसिएशन के कार्यक्रम में रविवार को जाट समाज के मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किए जाने के मौके पर मुख्य अतिथि केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री एवं मुजफ्फरनगर सांसद डा. संजीव बालियान ने ये कहा कि अगले 6 माह में जाट आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। संजीव बालियान के जाट आरक्षण के संबंध में पहले भी कई बयान आए हैं और राजनीति के जानकार इसे उनके लिए घातक मान रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जाट आरक्षण का दांव खेलकर चौधरी अजित सिंह नुकसान उठा चुके हैं और अब संजीव भी उसी राह पर चल पड़े हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से अजित सिंह ने राहुल गांधी को विश्वास में लेकर जाट आरक्षण का ऐलान कराया था उससे अजित सिंह को अन्य बिरादरियों में भारी विरोध का नुकसान उठाना पड़ा था, वे हार गए थे। 
मुजफ्फरनगर सांसद संजीव बालियान का राजनीतिक कैरियर केवल तीन साल का है और इसी दौरान उन्होंने वो सब हासिल कर लिया जो पाने के लिए लोगों की जिंदगी गुजर जाती है। संजीव ने 2012 नवंबर माह में अपने गांव कुटबी में नितिन गडकरी (तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष) की रैली कराने के साथ राजनीति में कदम रखा था और आज वह केंद्रीय राज्यमंत्री हैं। मुजफ्फरनगर में हुए लोकसभा चुनाव में संजीव ने बसपा के कादिर राणा को चार लाख से भी अधिक मतों से हराया था। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि क्या ये भारी मतदान उनके समर्थन में केवल जाटों ने ही किया था? मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर तो जाट मतदाताओं की संख्या ही मुश्किल से दो लाख के आसपास होगी और संजीव को छह लाख वोट मिले थे। संजीव को सभी हिंदू मतदाताओं ने सपोर्ट किया था और इनमें ठाकुर, गुर्जर, सैनी, त्यागी, ब्राह्मण और वैश्य आदि समेत सभी प्रमुख बिरादरियां शामिल थीं। हालांकि मोदी लहर का भी प्रभाव था लेकिन ये सर्वविदित सत्य है कि ये सभी बिरादरी हमेशा ही यहां भाजपा के लिए वोट करती आई हैं।
मुजफ्फरनगर से जितने भी भाजपा सांसद (एक बार नरेश बालियान व दो बार सोहनवीर सिंह) बने हैं वे सभी जाट बिरादरी से ही हुए हैं। केवल एक बार (2004) भाजपा ने गैर जाट प्रत्याशी (ठाकुर अमरपाल सिंह) को मैदान में उतारने को जोखिम उठाया था और उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। जाट वोटरों ने अजित सिंह की पार्टी रालोद के साथ मिलकर लड़ रही समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी स्व. मुनव्वर हसन को वोट दिए थे और उन्हें सफलता दिलाई थी। इससे पहले जब 1999 में कांग्रेस के टिकट पर सईदुज्जमां मुजफ्फरनगर से लोकसभा का चुनाव लड़े थे तो उनकी पार्टी का भी अजित सिंह की पार्टी रालोद से पैक्ट था और वे जीत गए थे। उस समय जमां के सामने भाजपा से सोहनवीर सिंह (जाट) प्रत्याशी थे। सोहनवीर सिंह लगातार दो बार (1996, 1998) से सांसद चुने जा रहे थे लेकिन जैसे ही अजित सिंह ने कांग्रेस से समझौता किया था वैसे है सारे जाट मतदाताओं ने जाट प्रत्याशी (सोहनवीर सिंह) के बजाय मुस्लिम प्रत्याशी सईदुज्जमां को वोट देना बेहतर समझा था।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि अब संजीव बालियान केंद्र में मंत्री बन जाने के बाद खुद को अजित सिंह की तरह जाटों का नेता साबित करने के प्रयास में लगे हुए हैं जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है। सब जानते हैं कि जब भाजपा ने यूपी में जाट आरक्षण लागू कराया था तो पार्टी को सत्ता से बाहर हो जाना पड़ा था। अजित सिंह तो पाला बदलकर मुलायम सिंह के साथ यूपी की सत्ता का सुख भोगने में सफल रहे थे लेकिन भाजपा तब से यूपी में वापस नहीं लौटी है। जाट आरक्षण को लेकर न केवल दूसरी बिरादरियों में प्रतिक्रिया हुई थी बल्कि भाजपा को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था।
इसमें कोई दोराय नहीं कि अजित सिंह वेस्ट यूपी में जाटों के प्रमुख नेता रहे हैं। ये बात भी सब जानते हैं कि सत्ता लोलुपता की वजह से अजित सिंह आज हाशिये पर चले गए हैं। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव से एक महीने पहले केंद्रीय नौकरियों में जाटों को आरक्षण दिलाने का जो दांव खेला था उसमें सारी कहानी ही उलट हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण देने के तरीके को ही गलत ठहराते हुए इसे रद्द कर दिया। चुनाव में अजित सिंह सारी सीटें हारकर घर बैठ गए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकसभा चुनाव के बाद आया था और संजीव बालियान केंद्र में मंत्री बन चुके थे। उसी समय से संजीव प्रयास कर रहे हैं कि वे किसी तरह से जाटों में अजित सिंह की तरह लोकप्रियता हासिल कर सकें। संजीव ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही घर पर वकीलों की एक टीम बुलाकर इस बारे में आगे कदम उठाने की पहल की थी और अगर उनकी मानें तो वे आज भी प्रयास कर रहे हैं कि जाट आरक्षण को लागू कराया जाए। ऐसे में उनके खिलाफ दूसरी बिरादरियों में लामबंदी होना स्वाभाविक है। 2019 में जब वे लोकसभा चुनाव में जाएंगे तो हालात जुदा होंगे। अगर सर्वेक्षणों की मानें तो वेस्ट यूपी में जाट मतदाता अजित सिंह की हार से व्यथित हैं। माना जा रहा है कि यूपी में 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जाट वोटर फिर से अजित सिंह का रुख कर सकते हैं। ऐसे में संजीव बालियान का ये सोच लेना कि वे अजित सिंह का स्थान ले सकते हैं, उनके लिए आग से खेलने के समान ही कहा जाएगा।
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जाट आरक्षण को लेकर संजीव द्वारा किए जा रहे प्रयासों से केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी नाराज हैं। भाजपा के दो ठाकुर विधायक भी इससे असहमत हैं। भाजपा के थिंक टैंक का मानना है कि अगर जाट आरक्षण लागू भी होता है तो क्रेडिट अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस व अजित सिंह को मिलेगा, क्योंकि जाट आरक्षण का पहल वे ही कर चुके हैं। इस बारे में पार्टी ने अब तक अपना रुख भी कभी साफ नहीं किया है क्योंकि कुछ-कुछ भूमि बिल जैसी स्थिति ही यहां बन जाएगी। जिस तरह से कांग्रेस उसका श्रेय लेने का प्रयास कर रही है उसी तरह जाट आरक्षण के मामले में भी हो सकता है। संजीव बालियान को जिस तरह से सभी का भारी समर्थन मिला था उसे देखते हुए राजनीतिक पंडितों की राय है कि अगर वे मध्यमार्गी और सबको साथ लेकर चलने का ही रास्ता अपनाएं तो ज्यादा बेहतर होगा।



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