Sunday 4 October 2015

मुजफ्फरनगर विस उपचुनावः क्या कांग्रेस समर्थक भीमसेन कंसल को भाजपा से टिकट मिल जाएगा ?

मुजफ्फरनगरः नगर सीट पर (नवंबर-दिसंबर) होने वाले विधानसभा उपचुनाव को लेकर राजनीति गिरगिट की तरह रंग बदल रही है। भाजपा में उम्मीदवारों की लंबी कतार के बीच अब कुछ ऐसे नाम भी उछाले जा रहे हैं जिनकी पार्टी से दूर-दूर तक लेना देना नहीं रहा है। मीडिया के जरिये नाम चलाए जा रहे हैं। हाल ही में एक लोकल अखबार में कांग्रेस पार्टी के लिए सक्रिय रहने वाले व्यापारी नेता भीमसेन कंसल का नाम भाजपा के संभावित टिकटार्थी के रूप में चलाए जाने पर भाजपा में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है।
भाजपा में पूर्व विधायक अशोक कंसल, पूर्व चेयरमैन कपिल देव अग्रवाल, जिला महामंत्री राजीव गर्ग, संजय अग्रवाल, श्रवण कुमार सर्राफ समेत कई नेताओं के नाम टिकट के लिए पहले से ही चल रहे हैं। स्व. चितरंजन स्वरूप के निधन के बाद खाली हुई इस सीट पर समाजवादी पार्टी से चित्तो के बेटे गौरव स्वरूप को टिकट देने की बात लगभग फाइनल मानी जा रही है लेकिन भाजपा से टिकट किसे होगा यही सवाल इस सीट पर सबसे अहम है। कांग्रेस औपचारिकता के लिए चुनाव लड़ सकती है लेकिन उसके प्रत्याशी की यहां कोई अहमियत नहीं है। बसपा उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं उतारती है ऐसे में मुकाबला सपा व भाजपा में ही रहेगा।
भाजपा में हमेशा से अप्रत्याशित नामों को टिकट देने की परंपरा रही है। कभी सुशीला अग्रवाल व अशोक कंसल भी इसी तरह विधायक बन गए थे। कपिल देव को 2002 में टिकट मिला था तो वे किसी भी तरह इस लायक नहीं थे। एकदम संघ से आए थे और चुनाव लड़ने लगे थे। चुनाव नहीं उठ पाया था और कपिल हार गए थे। इसी तरह अशोक कंसल को जब 2007 में टिकट मिला था तो केवल व्यापारी नेता ही थे, लेकिन माहौल सपा के खिलाफ था और प्रदेश में बसपा की लहर थी। शहरी सीट पर सपा विरोधी लहर का फायदा कंसल को मिला था और वे विधायक बन गए थे।
जिस तरह से भीमसेन कंसल के नाम को मीडिया के जरिये प्लांट किया गया है उसे देखते हुए ये कहा जा सकता है कि अभी भी कुछ लोग नए नामों को सामने लाना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री और मुजफ्फरनगर सांसद संजीव बालियान को कपिल देव अग्रवाल के नजदीक माना जा रहा है। कपिल और संजीव को अक्सर साथ देखा जा सकता है। संजीव और कपिल दोनों ही की संघ में घुसपैठ अच्छी है। हालांकि संजीव बालियान ने संदेश ये ही दिया है कि वे किसी के भी समर्थन में नहीं हैं और तटस्थ हैं।
फिलहाल भीमसेन कंसल का नाम चलाए जाने के बाद भाजपा में उतनी प्रतिक्रया तो नहीं हुई है जितनी की अपेक्षित थी लेकिन फिर भी पार्टी में पहले से सक्रिय नेताओं ने इस बात का प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि भीमसेन किसी भी हिसाब से भाजपा में फिट नहीं बैठते। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सोमांश प्रकाश के वे नजदीक रहे हैं। 2013 में जब नगर पालिका के चुनाव हुए थे तो सोमांश प्रकाश ने पंकज अग्रवाल को कांग्रेस से टिकट दिलवाया था और भीमसेन ने पंकज के लिए काम किया था। पंकज ने भाजपा के संजय अग्रवाल को हराकर चुनाव जीता था। खुद भाजपा ये मानती है कि 2012 में उसने ये चुनाव केवल इसलिए हारा था क्योंकि सोमांश कांग्रेस प्रत्याशी थे। सोमांश ने नई मंडी के वैश्य बहुल इलाके में भाजपा की बीस हजार के करीब वोट कोट दी थी और इतने ही अंतर से अशोक कंसल चितरंजन से चुनाव हार गए थे। ऐसे में भाजपा में ये कोई नहीं चाहेगा कि कांग्रेस नेता के निकटस्थ भीमसेन को टिकट दिया जाए। कुछ नेताओं ने तो साफ कर दिया है कि ऐसा करना पार्टी को बगावत में धकेलना है। हालात कुछ ऐसे ही बन जाएंगे जैसे पिछली बार हुए थे। 2012 में जब कपिल देव ने सिटिंग विधायक अशोक कंसल का टिकट कटवाने का प्रयास किया था और वह सफल नहीं हुए थे तो चुनाव में बगावत के ही आसार बने थे। कपिल गुट ने कंसल के खिलाफ काम किया था और वे चुनाव हार गए थे। कंसल ने लिखकर संगठन को ये दिया था कि कपिल व उनके समर्थकों ने उनके खिलाफ काम किया है। हाईकमान ने उन्हें (कपिल) व कई अन्य नेताओं को नोटिस तक जारी कर जवाब तलब किया था। ऐसे में कांग्रेस से आए प्रत्याशी को भाजपा में कोई स्वीकार कर पाएगा इसके आसार कम ही हैं। बहरहाल पार्टी में टिकट के लिए मच रही आपाधापी के बीच अंत में पार्टी किसी निर्विवादित नाम को ही फाइनल कर दे तो ज्यादा अचंभा नहीं होना चाहिए।





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