Thursday 30 July 2015

देर रात तक खुली देश की सबसे बड़ी अदालत

याकूब की इंसाफ की गुहार पर आखरी दम तक सुनवाई नई दिल्ली: 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन को फांसी तो दे दी गई लेकिन इस मामले में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इंसाफ की गुहार को सुनने के लिए अंतिम क्षण तक हरसंभव प्रयास किए उसे भारतीय न्याय पालिका के इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार की रात दो बजे से गुरुवार की सुबह पांच बजे तक जिस तरह से इस मामले पर अंतिम सुनवाई की उसे एक बहुत बड़े बदलाव के रूप में भी देखा जा रहा है।
बुधवार की देर रात 2 से 5 बजे के बीच इस मामले में अंतिम तौर पर सुनवाई करते हुए तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के अध्यक्ष दीपक मिश्रा ने अदालत कक्ष संख्या 4 में एक आदेश में कहा कि मौत के वारंट पर रोक लगाना न्याय का मजाक होगा। याचिका खारिज की जाती है। सुनवाई के लिए अदालत कक्ष अभूतपूर्व रूप से रात में खोला गया। तीन बजकर 20 मिनट पर शुरू हुई सुनवाई 90 मिनट तक चली। बुधवार दो दिन में निराशा मिलने के बाद याकूब के वकीलों ने देर रात अपनी रणनीति बदली और वे प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू के घर गए। उन्होंने इस आधार पर फांसी की सजा रूकवाने के लिए उन्हें तत्काल सुनवाई के लिए याचिका दी कि मौत की सजा पाए दोषी को 14 दिन का समय दिया जाए जिससे कि वह दया याचिका खारिज किए जाने को चुनौती देने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके। विचार विमर्श के बाद प्रधान न्यायाधीश ने उन्हीं तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित कर दी जिन्होंने पूर्व में बुधवार को दिन में मौत के वारंट पर फैसला किया था। वरिष्ठ अधिवक्ताओं आनंद ग्रोवर और युग चौधरी ने कहा कि अधिकारी याकूब को दया याचिका खारिज किए जाने के राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने का अधिकार दिए बिना उसे फांसी लगाने पर तुले हैं। ग्रोवर ने कहा कि मौत की सजा का सामना कर रहा दोषी दया याचिका खारिज होने के बाद विभिन्न उद्देश्यों के लिए 14 दिन की मोहलत पाने का हकदार है।
याकूब की याचिका का विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि उसकी ताजा याचिका प्रणाली का उल्लंघन करने के समान है। उन्होंने कहा कि 10 घंटे पहले तीन न्यायाधीशों द्वारा मौत के वारंट को बरकरार रखे जाने के फैसले को निरस्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि समूचा प्रयास लंबे समय तक जेल में रहने और सजा कम कराने का प्रयास प्रतीत होता है। फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा 11 अप्रैल 2014 को पहली दया याचिका खारिज किए जाने के बाद दोषी को काफी समय दिया गया जिसकी सूचना उसे 26 मई 2014 को दी गई थी। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि असल में पहली दया याचिका खारिज होने के बाद उसे काफी समय दिया गया जिससे कि वह परिवार के सदस्यों से अंतिम मुलाकात करने और अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार हो सके। पीठ ने कहा कि यदि हम डेथ वारंट पर रोक लगाते हैं तो यह न्याय का मजाक होगा। इसने यह भी कहा कि रिट याचिका में कोई दम नहीं लगता। इसने आगे कहा कि कल आदेश सुनाते हुए टाडा अदालत द्वारा 30 जुलाई को फांसी देने के लिए 30 अप्रैल को जारी किए गए डेथ वारंट में हमें कोई खामी नहीं दिखी। आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ग्रोवर ने कहा कि यह एक दुखद गलती और गलत फैसला है।

मिसाल कायम की सुप्रीम कोर्ट ने: मुकुल

नई दिल्ली: मामले में सरकार की ओर से पैरवी करते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने गुरुवार को कहा कि उन परिवारों के लिए न्याय की जीत हुई, जिनके परिजनों ने 1993 के मुंबई बम धमाकों में जान गंवाई थी। रोहतगी ने कहा कि मुझे खुशी है कि लंबी प्रक्रिया समाप्त हुई है। दोषी को 22 साल अवसर दिया गया था। मेमन की पुनर्विचार याचिका और दया याचिका खारिज की गई थी। उसे खुली अदालत में उसकी पुनर्विचार याचिका पर दोबारा सुनवाई का अधिकार भी मिला। रोहतगी ने कहा कि एक सुधारात्मक याचिका दायर की गई थी और उसे इस साल 21 जुलाई को खारिज कर दिया गया। एक नई रिट याचिका पर 27 जुलाई से कल तक सुनवाई हुई। महाराष्ट्र के राज्यपाल और राष्ट्रपति ने भी फिर से उसकी दया याचिकाएं खारिज कर दीं। उसके बाद उच्चतम न्यायालय में मध्य रात्रि में एक नई याचिका दायर की गई और आखिरकार यह इस रूप में परिणत हुआ।
ऐतिहासिक सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय की सराहना करते हुए रोहतगी ने कहा कि मैं खुश हूं कि उच्चतम न्यायालय ने इस चुनौती का सामना किया। उसने मेमन जैसे कैदी की याचिका पर सुनवाई की, जो 257 लोगों की हत्या में शामिल था। यह अब भारत की सभी अदालतों के लिए रोल मॉडल है और न्याय का प्रकाशस्तंभ है। रोहतगी ने कहा कि शीर्ष अदालत के प्रति सम्मान काफी बढ़ गया है। एक अप्रत्याशित सुनवाई के तहत उसने तड़के तीन बजे सुनवाई की क्योंकि फांसी सुबह सात बजे दी जानी थी। इस तथ्य के बावजूद उसने सुनवाई की कि पीठ ने दोषी की याचिका पर कल सुबह साढ़े 10 बजे से शाम साढ़े चार बजे तक सुनवाई करते हुए दोनों पक्षों की बातों को सुना। इसी तरह की राय जाहिर करते हुए पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने कहा कि मुझे बेहद गर्व है कि हमारे पास ऐसी न्यायपालिका है, जो लोगों के अधिकारों के प्रति इतनी संवेदनशील है।
मौत की सजा का सामना कर रहे सभी दोषी अब अपनी फांसी से कुछ घंटे पहले पूरी रात सुनवाई की मांग कर सकते हैं, इस चिंता पर प्रतिक्रिया जताते हुए मौजूदा और पूर्व दोनों अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह ऐसा मामला था जिसमें उच्चतम न्यायालय के इस तरह के कदम की जरूरत थी और सभी मामले अलग हैं। रोहतगी ने कहा कि अप्रत्याशित सुनवाई पहले भी हुई हैं। उच्चतम न्यायालय भेदभाव नहीं करता है। उसने कानून के गौरव को बहाल रखा है। दोषी की ताजा दया याचिकाओं की वजह से अंतिम समय पर सुनवाई को उच्चतम न्यायालय राजी हुआ। वह याचिका कल दायर की गई थी। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस मामले में दूसरा और कोई रास्ता नहीं था। सोराबजी ने कहा कि यह एक विशेष मामला था। यह सभी मामलों में मध्य रात्रि में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के प्रचलन को बढ़ावा नहीं देगा।

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