Saturday 26 September 2015

मुजफ्फरनगर विस उपचुनावः जानिए भाजपा से किसे मिलने जा रहा है टिकट ?

अंतिम दौर में दो ही लोगों के बीच सिमट सकता है मुकाबला
मुजफ्फरनगरः जिले की फिजाओं में इस समय दो ही बातें तैर रही हैं। पहली मुजफ्फरनगर दंगों की जांच रिपोर्ट और दूसरी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव। ये तय हो गया है कि अखिलेश यादव जांच रिपोर्ट विधानसभा में पेश करने वाले हैं। माना जा रहा है कि चितरंजन स्वरूप के निधन के बाद खाली हुई विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहेगा। यही वजह है कि टिकट के लिए मारामारी है लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि दो-तीन नेताओं के बीच ही ये मुकाबला सिमटकर रह गया है। अब कोई नया नाम तभी सामने आ सकता है जब भाजपा किसी गैर वैश्य नेता को प्रत्याशी बनाने का इरादा कर ले। गैर वैश्य बिरादरी में (ब्राह्मण व पंजाबी समाज) से टिकट हो इसके आसार कम ही नजर आते हैं क्योंकि भाजपा मुजफ्फरनगर सीट को वैश्य प्रत्याशी के लिए एक तरह से रिजर्व मानती है। 

सपा चितरंजन स्वरूप (जिनके निधन के बाद ये सीट खाली हुई) के बेटे गौरव स्वरूप को लड़ाने का मन बना चुकी है। कहा जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगे के रिपोर्ट में तमाम भाजपा नेताओं के नाम शामिल हैं। अगर विधानसभा उपचुनाव से पहले ही ये रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी गई तो भाजपा को इसका पूरा-पूरा लाभ मिलेगा। भाजपा अपने नेताओं को रिपोर्ट में दोषी ठहराए जाने को मुद्दा बनाएगी और उसके समर्थन में सहानुभूति का माहौल बनेगा। इस सबके बीच भाजपा में टिकट के लिए गला काट स्पर्धा है। आइये देखते हैं कौन-कौन से नाम किन वजहों से चल रहे हैः- 

अशोक कंसलः

कंसल 2007 में विधायक बने थे लेकिन 2012 में चितरंजन स्वरूप से हार गए थे। कंसल व्यापारी हैं और कपड़े का कारोबार करते हैं। उनके बारे में एक बात पर तो सहमति है कि वे सीधे-सादे इंसान हैं और सबकी बात सुनते हैं। ये उनकी ताकत भी है और कमजोरी भी। यही वजह है कि 2012 में उनका टिकट कटते-कटते रह गया था। उन्हें टिकट केवल इस वजह से मिला था क्योंकि भाजपा ने अपने सभी सिटिंग विधायकों को टिकट दोहराने का फैसला कर लिया था। 2012 में उनका टिकट कटवाने के लिए पूरे जोर लगाए गए थे। 2012 में बसपा से अरविंद राज शर्मा के रूप में ब्राह्मण प्रत्याशी उतर जाने के कारण भी कंसल को नुकसान हुआ और वे 20 हजार मतों से चुनाव हार गए थे। कंसल उपचुनाव में भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं। इस बार बसपा मैदान में नहीं है और माना जा रहा है कि भाजपा की जीत तय है।

कपिल देव अग्रवालः

कपिल देव संघ की बैकग्राउंड से आते हैं। वे संघ में लंबे समय से प्रचारक के रूप में जुड़े रहे हैं। तेज तर्रार हैं और 2002 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन चितरंजन स्वरूप से हार गए थे। इसके बाद 2006 में निकाय चुनाव हुए तो वे टिकट हासिल कर चुनाव लड़े और चेयरमैन बन गए। चेयरमैन के रूप में उनका कार्यकाल काफी विवादित रहा। उन पर आरोप लगे कि वे पालिका का सारा राजस्व अपनी विज्ञापन एजैंसी की ओर भेज रहे हैं। इसके अलावा भी लगातार वे विवादों में फंसे रहे। ये भी कहा गया कि उनके कार्यकाल में विकास नहीं हो सका। सबसे बड़ी बात ये हुई कि 2013 में जब पालिका चेयरमैन का चुनाव हुआ तो भाजपा प्रत्याशी संजय अग्रवाल को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 15 साल बाद ये सीट भाजपा हारी और इसमें ये भी माना गया कि कपिल देव की खराब परफोर्मेंस भी काफी हद तक जिम्मेदार रही। ये सब बातें कपिल की राह में रोड़ा बन सकती हैं। वैसे माना जाता है कि कपिल लॉबिंग करने में माहिर हैं। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान, जो मुजफ्फरनगर के सांसद भी हैं, के साथ उन्हें अक्सर देखा जा सकता है।

राजीव गर्गः

इस समय भाजपा के जिला महामंत्री हैं। पहले भी इस पद पर रह चुके हैं और दो बार भाजपा के नगर अध्यक्ष रहे हैं। उनके कार्यकाल में भाजपा ने विधानसभा व निकाय चुनावों में शानदार सफलता हासिल की थी। राजीव गर्ग निर्विवादित छवि के नेता हैं। संघ से जुड़ाव व भाजपा के निचले स्तर के कार्यकर्ता तक सीधे उनकी पहुंच है। इससे पहले भी विधानसभा टिकट के दावेदार रहे हैं लेकिन अंतिम समय पर उन्हें दरकिनार कर किसी को टिकट दे दिया गया। 2006 में चेयरमैन पद के लिए उनका नाम एकदम फाइनल था लेकिन उन्होंने इसके लिए अनिच्छा जाहिर कर दी तो कपिल देव को टिकट मिल गया। प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी इस बार राजीव गर्ग के समर्थन में बताए जा रहे हैं। बहुत संभव है कि राजीव सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरें। पार्टी उन्हें उनकी लंबी सेवाओं का सिला भी दे सकती है।

संजय अग्रवालः

2013 में नगर पालिका अध्यक्ष पद का चुनाव हार चुके हैं। इससे पहले भाजपा संगठन में भी उनका योगदान कुछ खास नहीं रहा है लेकिन भाजपा की मुजफ्फरनगर से विधायक रही सुशीला अग्रवाल के नजदीकी रहे हैं। इसके अलावा संगठन व संघ में कुछ नेताओं के करीबी बताए जाते हैं। उनके खिलाफ सबसे बड़ी बात तो ये ही जा रही है कि वे पालिका चुनाव बुरी तरह से हारे थे। जनता के बीच ये मैसेज गया था कि वे कमजोर प्रत्याशी हैं। यही वजह है कि कांग्रेस जैसे कमजोर सिंबल पर लड़ रहे पंकज अग्रवाल (वर्तमान चेयरमैन) ने ही उन्हें हरा दिया था।  5 हजार मतों से वे हारे थे।  उन्हें टिकट मिलने की संभावना कम ही नजर आती है। 

मुख्य मुकाबलाः

माना जा रहा है कि अंतिम समय आते-आते मुकाबला अशोक कंसल व राजीव गर्ग के बीच ही सिमटकर रह जाएगा। संघ में दोनों ही नेताओं की पकड़ अच्छी है लेकिन संगठन की बात करें तो ज्यादातर लोग राजीव गर्ग के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। बहरहाल ये राजनीति है और इसमें कुछ भी संभव है। अभी विधानसभा चुनाव कब होंगे ये भी तय नहीं है। बहरहाल तमाम टिकटार्थी इस समय लखनऊ और मेरठ (जहां प्रदेश अध्यक्ष रहते हैं) के चक्कर काट रहे है और अपने लिए समर्थन जुटा रहे हैं।





1 comment:

  1. Rajeev Garg ji ko hamara jordaar samarthan hai...is baar ticket inko hi milega..aur vo jeetenge bhi...

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