Saturday 13 June 2015

यूपी भाजपा अध्यक्ष चुनावः वाजपेयी का दावा कमजोर, दिनेश शर्मा नंबर वन दावेदार


अक्टूबर-नवंबर में होने हैं पार्टी में संगठनात्मक चुनाव
लखनऊः उत्तर प्रदेश में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए लखनऊ के प्रो. दिनेश शर्मा को प्रबल दावेदार माना जा रहा है। वे वर्तमान में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं और लगातार दो बार से लखनऊ के मेयर हैं। बताया जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री उमा भारती व कलराज मिश्र के निकट होने का लाभ उन्हें मिल सकता है। हालांकि वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ.लक्ष्मीकांत वाजपेयी भी फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन उन्हें आगे दोबारा मौका मिलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। इसके अलावा वर्तमान में प्रदेश में महामंत्री का काम देख रहे स्वतंत्र देव सिंह भी अध्यक्ष पद के लिए दावेदार हो सकते हैं।
जब दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर बने थे तो वाजपेयी प्रदेश अध्यक्ष बन चुके थे। 
बता दें, भाजपा में कुछ ही महीने बाद संगठनात्मक चुनाव होने जा रहे हैं। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष तक के चुनाव होने हैं। वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को अस्थायी रूप से अध्यक्ष का कार्यभार दिया गया था। तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह केंद्र में मंत्री बन गए थे और एक साल के लिए मोदी के कहने पर अमित शाह को अध्यक्ष बना दिया गया था। अब बारी संगठनात्मक चुनावों की है। माना जा रहा है कि चुनाव अक्टूबर-नवंबर में कभी भी हो सकते हैं। ये भी संभव है कि अमित शाह ही नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएं।
उत्तर प्रदेश में डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को अध्यक्ष बने हुए तीन साल पूरे हो चुके हैं। अब यहां भी अध्यक्ष पद का चुनाव होना है। यूपी में विधानसभा के चुनाव 2012 में हुए थे और वाजपेयी को उसके बाद ही प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय ये कहा गया था कि पूरी यूपी में भाजपा के खराब प्रदर्शन के बावजूद चूंकि मेरठ और वेस्ट यूपी में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा है इसलिए भाजपा संगठन ने वेस्ट यूपी को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद देने का फैसला किया था। वाजपेयी मेरठ से लगातार भाजपा विधायक रहते आए हैं। इसलिए उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था।
अध्यक्ष बनने के बाद वाजपेयी के नेतृत्व में ही यूपी में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भारी जीत हासिल की। भाजपा ने यहां 73 सीटें जीतकर रिकार्ड कायम किया। हालांकि मोदी लहर का असर भी इसमें रहा था। बहरहाल वाजपेयी को इस जीत का कोई क्रेडिट नहीं दिया गया। यहीं नहीं वाजपेयी पर उनके विरोधियों ने ये आरोप भी लगाए कि यूपी में टिकटों के बटवारे में जबर्दस्त धांधली हुई। कुछ लोगों ने आरोप लगाए कि वेस्ट यूपी में कुछ टिकटों को लेकर पैसे का लेन-देन हुआ। किसी ने फ्लैट दिए तो किसी ने बड़े नेताओं को गाडि़यां भेंट की। वाजपेयी भी इन आरोपों से अछूते नहीं रहे। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी के सामने वाजपेयी की अच्छी छवि नहीं बताई जाती है। ऐसे में वाजपेयी के फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनने के आसार कम ही हैं।


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