Tuesday 23 June 2015

संसद की कैंटीन में दी जा रही है करोड़ों की सब्सिडी

24 रुपये की लागत वाला मसाला डोसा छह रुपये में

100 रुपये की लागत वाली नानवेज थाली 33 रुपये की

नई दिल्ली: एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों से गैस सिलेंडर की सब्सिडी स्वेच्छा से सरेंडर करने का आह्वान कर रहे हैं वहीं संसद भवन में केवल खाने के लिए 14 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जा रही है। संसद की कैंटीनों में कच्चे माल की कीमत से भी कई गुना सस्ती दर पर खाने पीने की चीजें उपलब्ध कराई जा रही हैं।
सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल को लोकसभा सचिवालय से ली गई जानकारी के अनुसार उत्तर रेलवे की संचालित संसद की आधा दर्जन कैंटीनों को वर्ष 2013-14 में 14 करोड़ रुपये से भी अधिक की सब्सिडी दी गई। इन कैंटीनों में खाने के दामों में कोई वृद्धि नहीं हुई है। वर्ष 2010 में जब कैंटीन में खाने पीने के सामानों में कुछ वृद्धि की गई थी तो कई सांसदों ने इसका कड़ा विरोध किया था। अब साल दर साल सब्सिडी की राशि बढ़ती जा रही है। संसद में कैंटीन चलाने के लिए रेलवे को बिजली, पानी तथा जगह फ्री में उपलब्ध है।
लोकसभा सचिवालय ने कैंटीन में मिलने वाले सामान की लागत तथा बिक्री मूल्य की सूची भी उपलब्ध कराई है। इसमें कुछ मेन्यू कच्चे सामान की कीमत से दस गुना से भी कम मूल्य पर बिक्री किया जा रहा है। संसद की कैंटीन में खाने पीने के लगभग 83 व्यंजन मिलते हैं। इनमें रोटी को छोड़कर कोई भी सामान ऐसा नहीं है जो खरीद व लागत से अधिक मूल्य पर बिक्री किया जा रहा हो। एक रोटी बनाने में 77 पैसे का आटा इस्तेमाल किया जाता है तथा रोटी की कीमत एक रुपये रखी गई है। बाकी सारा सामान कम दाम में ही मिल रहा है। यही कारण है कि साल भर में इन कैंटीनों के लिए 5.97 करोड़ का सामान खरीद के बावजूद कुल बिक्री मात्र 3.87 करोड़ रुपये की ही हो पाती है।
कैंटीन में सब्सिडी का सबसे बड़ा हिस्सा 11.74 करोड़ रुपये कर्मचारियों के वेतन के रूप में खर्च करना पड़ता है। आरटीआई के अनुसार कैंटीनों में मसाला डोसा की कीमत छह रुपये है लेकिन इसे बनाने में जो सामग्री इस्तेमाल होती है, उसकी कीमत 23.26 रुपये पड़ रही है। इसी प्रकार मटन करी 20 रुपये में मिलती है जबकि उसकी लागत 61.36 रुपये पड़ रही है। नानवेज थाली की कीमत 33 रुपये है, लेकिन इसमें 99.04 रुपये की सामग्री इस्तेमाल होती है। इसी प्रकार दाल फ्राई चार रुपये की मिलती है, जबकि उसकी सामग्री की ही लागत 13.11 रुपये बैठ रही है।  इन कैंटीनों में सांसद, उनके परिजन, संसद भवन में कार्य करने वाले लोग, वहां कवरेज के लिए जाने वाले मीडियाकर्मी आदि भोजन करते हैं। यह मांग उठने लगी है कि इन सभी लोगों को सब्सिडी क्यों दी जा रही है?

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