Tuesday 23 June 2015

अन्ना हजारे के संगठन ने भूमि अधिग्रहण में बदलाव का किया विरोध

नई दिल्ली: भाजपा के पूर्व विचारक गोविन्दाचार्य एवं अन्ना हजारे के संगठन ने आज विभिन्न गैर सरकारी संगठनों एवं किसान संगठनों के सुर में सुर मिलाते हुए भूमि अधिग्रहण विधेयक में किये गये बदलाव का विरोध किया और अध्यादेश के जरिये इस मामले में जल्दबाजी दिखाये जाने पर सवाल उठाये।
इस बीच माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने दावा किया है कि विपक्ष भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में न तो पारित होने देगा और न ही गिरने देगा। इससे सरकार को संसद के संयुक्त सत्र में इसे पारित करवाने का मौका नहीं मिलेगा। उन्होंने आरोप लगाया कि बदलाव से किसानों को नुकसान हुआ तथा इसका मकसद पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाना है। इससे देश में खाद्यान्न उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
गोविन्दाचार्य ने विवादास्पद भूमि विधेयक 2015 की जांच कर रही संसद की संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष आरोप लगाया कि शोषित एवं वंचित वर्गों के हित के लिए बनाये गये भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को बदलने के लिए सरकार बुरी तरह से लगी हुई है। सरकार द्वारा इस अध्यादेश को तीन बार जारी किये जाने से इस बात का संदेश गया है कि यह किसानों की कीमत पर पूंजीवादियों के हितों के लिए किया गया है।
भाजपा सांसद एस एस अहलुवालिया की अध्यक्षता वाली समिति ने आज हजारे के रालेगण सिद्धि स्थित भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास, पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबरटीज, आल इंडिया किसान सभा, केएन गोविन्दाचार्य, डा राम सिंह, रेमुना लैंड लूजर्स कृषक मोर्चा, एशियन सेंटर फार ह्यूमन राइट्स और सेंटर फार पालसी रिसर्च के विचार सुने।
समझा जाता है कि गोविन्दाचार्य ने समिति को दिये अपने लिखित विचारों में मांग की है कि केन्द्र सरकार को भूमि कानून पर अध्यादेश लाने का पथ त्याग देना चाहिए तथा अंतिम व्यक्ति के हित में 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून से भी बेहतर कानून बनाना चाहिए। गोविन्दाचार्य ने सवाल उठाया कि क्या भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव का वादा किया था। उन्होंने कहा, ''यदि ऐसा नहीं है तो जल्दबाजी में अध्यादेश लाये जाने के पीछे कौन सी मानसिकता झलकती है।
माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने आज कहा कि विपक्ष भूमि विधेयक को न तो पास होने देगा और न ही गिर जाने देगा। इन दोनों ही स्थितियों में विधेयक पारित करवाने के लिए सरकार संसद का संयुक्त सत्र नहीं बुलवा पायेगी। येचुरी के इस दावे से पहले वित्त मंत्री अरूण जेटली की यह टिप्पणी आई थी कि यदि भूमि सुधार विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो पाया तो संसद का संयुक्त सत्र बुलाया जायेगा क्योंकि इस विधेयक का पारित होना सुधार के अगले चरण की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है ताकि विकास लक्ष्य को हासिल किया जा सके।





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