Wednesday 10 June 2015

COMPLETE STORY: भारतीय सेना ने सीमा पार कर घर में घुस मारा उग्रवादियों को

इन्हीं कमांडोज ने म्यांमार में जाकर आपरेशन चलाया। पहचान छिपाने के लिए चेहरे ब्लर कर दिए गए हैं। 
नई दिल्लीः भारतीय सेना ने जिस तरह से म्यांमार की सीमा में घुसकर अपना बदला लिया है उसने सारी दुनिया में इंडियन आर्मी की धूम मचा दी है। विदेशी मीडिया ने भारत की कार्रवाई को सराहा है और कहा है कि अगर बात देश के मान सम्मान की हो तो फिर इसमें कुछ गलत नहीं है। बता दें, मणिपुर में 18 सैनिकों की हत्या का हिसाब चुकता करने के लिए ये कार्रवाई की गई है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, हत्यारों पर कार्रवाई का फैसला 4 जून को कर लिया गया था और सोमवार 8 जून को इसे अंजाम दिया जाना था, लेकिन कुछ कारणों से फिर मंगलवार सुबह 3 बजे कार्रवाई की गई। सोशल मीडिया पर भी भारतीय सेना की धूम मची है और हैशटैग इंडियन आर्मी रॉक्स लगातार टॉप पर चलता रहा।सेना के विशेष बल ने म्यांमार की सीमा में घुसकर 15 उग्रवादियों को मौत की नींद सुला दिया। पहला मौका था जब भारत ने क्रॉस बॉर्डर ऑपरेशन के जरिए ऐसी कार्रवाई की। सेना के कमांडोज ने यह कार्रवाई एक विशेष सूचना के आधार पर म्यांमार अफसरों से तालमेल बैठाकर की। म्यांमार में भारत के ऑपरेशन के सूत्रधार थे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल। अजित डोभाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बांग्लादेश के दौरे पर जाना था, लेकिन अपनी योजना बदल डोभाल मणिपुर पहुंच गए। मणिपुर में 4 जून को उग्रवादियों के हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे। डोभाल को इस तरह के ऑपरेशन का विशेषज्ञ माना जाता है।
केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने मंगलवार को खुलासा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को म्यांमार में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी दी थी, जिसमें उग्रवादियों के दो शिविरों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया गया। राठौड़ ने कहा कि यह इन उग्रवादियों की आदत बन गई थी कि वे सेना या अर्धसैनिक बलों अथवा देश के नागरिकों पर हमले करते थे और उसके बाद में भागकर सीमापार स्थित अपने सुरक्षित पनाहगाह में शरण ले लेते थे क्योंकि उन्हें इस बात का भरोसा था कि भारतीय सशस्त्र बल उनका पीछा नहीं करेंगे।

फिर हमला कर सकते थे ये उग्रवादी

अतिरिक्त सैन्य अभियान महानिदेशक मेजर जनरल रणवीर सिंह ने बताया कि नगालैंड और मणिपुर सीमा के निकट तड़के सेना ने अपना अभियान चलाया। सेना को पक्की सूचना मिली थी कि ये उग्रवादी भारतीय क्षेत्र में फिर से हमले की साजिश रच रहे हैं। उन्होंने कहा, हमने उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया है। फलस्वरूप, हमारे नागरिकों एवं सुरक्षाबलों को खतरा टल गया है। मेजर जनरल सिंह ने ये भी कहा कि पिछले हमलों में शामिल संगठनों की ओर से हमारे सुरक्षाकर्मियों और सहयोगियों पर हमला किए जाने की साजिश रची जा रही थी। गत दिनों हुए हमले के बाद खतरे को ध्यान में रखते हुए हमारी ओर से तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत थी। हमने म्यांमार अधिकारियों से तालमेल बैठाने के बाद इस कार्रवाई को अंजाम दिया।हम ऐसे उग्रवादियों का मुकाबला करने के लिएम्यांमार के साथ मिलकर काम करने को आशान्वित रहे हैं।

वायुसेना ने भी किया इस आपरेशन में सहयोग

म्यांमार सीमा में धावा बोलकर 15 उग्रवादियों को मार गिराने की कार्रवाई में सेना के साथ वायुसेना ने मिलकर सफल अभियान चलाया। ऑपरेशन में ऐसे अभियानों के लिए विशेष तौर पर प्रशिक्षित पैरा कमांडो फोर्स के साथ हेलीकॉप्टरों का भी इस्तेमाल किया गया। सेना और वायुसेना के इस संयुक्त अभियान में एमआई-17 हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया। असम रायफल्स और 21 पैरा स्पेशल फोर्स ने म्यांमार की सीमा में दो किमी अंदर घुसकर इस कार्रवाई को अंजाम दिया। हेलीकॉप्टरों ने पहले उग्रवादियों की गतिविधियों की टोह ली और उसके बाद धावा बोला गया। नगालैंड के तुएनसांग जिले और मणिपुर के उखरुल जिले से लगी म्यांमार सीमा अभियान को अंजाम दिया गया।

म्यांमार की सीमा में ही क्यों हुई कार्रवाई ?

म्यांमार से सटी भारत की सीमा 1643 किलोमीटर लंबी है। दोनों सीमाओं के बीच आज तक फेंसिंग नहीं हुई। दोनों देशों के सुरक्षा बल अपने इलाकों में 16 किलोमीटर अंदर तक आजादी से आवाजाही करने की इजाजत देते हैं। यही वजह है कि 4 जून को उग्रवादी मणिपुर में हमला करने के बाद म्यांमार की तरफ भाग निकले। पूर्वोत्तरी राज्यों में कम से कम 24 उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं। इनमें से अधिकतर के ट्रेनिंग कैम्प म्यांमार और भूटान में हैं।

चीन कर रहा है इन उग्रवादी संगठनों को मदद

खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, माना जाता है कि उल्फा के फरार प्रमुख परेश बरुआ ने एनएससीएन-के (मणिपुर में हमला करने वाला उग्रवादी संगठन) नेता एसएस खापलांग को पिछले साल मार्च में भारत के साथ हुए 14 साल पुराने संघर्ष विराम समझौते को तोड़ने के लिए राजी करवाया था। आरोप है कि बरुआ चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की शह पर काम करता है। खापलांग एवं बरुआ के बारे में माना जाता है कि वे प्राय: म्यामांर और चीन के युनान प्रांत के रूइली एवं कुनमिंग के बीच आते रहते हैं तथा चीनी अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में रहते हैं। कुछ दिनों पहले यह भी खबर आई थी कि भारत ने म्यांमार को एनएससीएन खपलांग गुट के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में रहे दोनों चीनी सैन्य अधिकारियों की टेप की गई बातचीत और उनके ठिकानों के बारे में जानकारी मुहैया कराई थी।

सोमवार रात शुरू हुआ आपरेशन से मंगलवार दोपहर तक चला

जोरदार प्लानिंग के बाद सोमवार देर रात ही भारतीय सेना के हेलिकॉप्टर्स ने पैरा कमांडोज को म्यांमार के सीमा के अंदर एयरड्रॉप किया। मंगलवार तड़के 3 बजे उनका ऑपरेशन शुरू हो गया। हालांकि, भारतीय राजदूत इसके बारे में म्यांमार के विदेश मंत्रालय में उस वक्त बता पाए, जब मंगलवार सुबह तयशुदा वक्त पर उनके दफ्तर खुले। कमांडोज ने 13 घंटे के ऑपरेशन में दोषी उग्रवादियों को ठिकाने लगा दिया। इस ऑपरेशन में इंडियन एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर और ड्रोन्स ने स्पेशल कमांडोज की मदद की। कमांडोज म्यांमार के सात किमी अंदर तक घुस गए। इस आपरेशन में भाग लेने वाले कमांडोज का फोटो भी न्यूज एजैंसी के माध्यम से जारी किया गया है लेकिन किसी का भी चेहरा साफ नहीं दिखाया गया है। ऐसा उनकी पहचान गुप्त रखने के लिए किया जा रहा है।
इंटेलिजेंस के इनपुट्स के आधार पर कमांडोज नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के कैंपों तक चुपचाप पहुंचे। कमांडोज को इन उग्रवादियों के कैंपों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों मीटर तक रेंग कर जाना पड़ा। तकनीकी एक्सपर्ट्स ने पक्का किया कि आतंकी इन्हीं कैंपों में हैं। ड्रोन्स के जरिए उन पर कई घंटों से नजर रखी गई थी। इसके बाद, कमांडोज ने जो किया, उसकी आधिकारिक जानकारी सेना ने मंगलवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दी।

पैराकमांडोज ने दिया मिशन को अंजाम 

मणिपुर में हमला करने वाले उग्रवादियों के खिलाफ भारतीय सेना के पैराकमांडोज ने मिशन को अंजाम दिया। इस यूनिट में कुछ हजार स्पेशली ट्रेन्ड कमांडोज होते हैं। यह कमांडोज पैराशूट रेजिमेंट के हिस्सा हैं। इसमें स्पेशल फोर्सेज की सात बटालियंस शामिल हैं। इस कमांडो यूनिट का निर्माण भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुई जंग के दौरान हुआ था। माना जाता है कि ये कमांडोज महाद्वीप के बाहर भी ऑपरेट कर चुके हैं। ये कमांडोज नेशनल सिक्युरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के अहम हिस्सा हैं। ये हाईजैक और आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन में महारत रखते हैं। इस यूनिट को बहुत सारे अशोक चक्र और अन्य बहादुरी के मेडल मिल चुके हैं। जून 2000 में सियेरा लियोन में इन कमांडोज ने गोरखा राइफल्स के 200 से ज्यादा सैनिकों को बचाया था। इन सैनिकों को विद्रोहियों ने बंदी बनाकर रखा था। श्रीलंका में लिट्टे से निपटने के लिए भेजी गई शांति सेना में भी इन कमांडोज की अहम भूमिका थी। 1971 की जंग में ढाका पहुंचने वाली पहली यूनिट पैरा कमांडोज ही थे। 1999 के कारगिल के जंग में कई सफल मिशनों को अंजाम दिया।


मणिपुर हमले में तबाह हुआ भारतीय सेना का ट्रक। इस घटना के बाद भारतीय सेनाओं ने म्यांमार में घुसकर आपरेशन को अंजाम दिया


काम आया अजीत डोभाल का अनुभव

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मणिपुर में इंटेलिजेंस इनपुट्स पर नजर रख रहे थे। डोभाल जब आईबी में थे, तब उन्हें 1986 में पूर्वोत्तर में उग्रवादियों के खिलाफ खुफिया अभियान चलाने का अनुभव है। उनका अंडरकवर ऑपरेशन इतना जबर्दस्त था कि लालडेंगा उग्रवादी समूह के 7 में से 6 कमांडरों को उन्होंने भारत के पक्ष में कर लिया था। बाकी उग्रवादियों को भी मजबूर होकर भारत के साथ शांति समझौता करना पड़ा था। 1968 के केरल बैच के आईपीएस अफसर अजीत डोभाल 6 साल पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट रहे हैं। वे पाकिस्तान में बोली जाने वाली उर्दू सहित कई देशों की भाषाएं जानते हैं। एनएसए बनने के बाद वे सभी खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों से दिन में 10 बार से ज्यादा बात करते हैं।
ऑपरेशन ब्लूस्टार के 4 साल बाद 1988 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक और अभियान ऑपरेशन ब्लैक थंडर को अंजाम दिया गया। मंदिर के अंदर दोबारा कुछ आतंकी छिप गए थे। तब डोभाल वहां रिक्शा चालक बनकर पहुंचे थे। कई दिनों तक आतंकियों ने उन पर नजर रखी और एक दिन बुला लिया। बताया जाता है कि डोभाल ने आतंकियों को भरोसा दिलाया कि वे आईएसआई एजेंट हैं और मदद के लिए आए हैं। डोभाल एक दिन स्वर्ण मंदिर के पहुंचे और आतंकियों की संख्या, उनके पास मौजूद हथियार और बाकी चीजों का मुआयना किया। उन्होंने बाद में पंजाब पुलिस को बाकायदा नक्शा बनाकर दिया। दो दिन बाद ऑपरेशन शुरू हुआ और आतंकियों को बाहर किया गया। इस ऑपरेशन में डोभाल की भूमिका के चलते उन्हें देश के दूसरे बड़े वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से नवाजा गया था। 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान को जब अगवा कर कंधार ले जाया गया था तब यात्रियों की रिहाई की कोशिशों के पीछे भी डोभाल का ही दिमाग था।

म्यांमार को जानकारी देने में देरी क्यों ?

सेना की ओर से मंगलवार शाम जो आधिकारिक जानकारी दी गई, उसमें कहीं यह बात नहीं कही गई कि यह मिशन म्यांमार और भारतीय सेना ने मिलकर किया। बस इतना ही बताया गया कि म्यांमार को इसकी जानकारी दी गई। सेना के बयान में कहा गया कि हम इस मामले पर म्यांमार के अधिकारियों से संपर्क में हैं। दोनों देशों की सेनाओं के बीच सहयोग का पुराना इतिहास है। हम आतंकवाद से लड़ने की दिशा में उनके साथ मिलकर काम करने की दिशा में सोच रहे हैं। हालांकि, म्यांमार और भारत के बीच सेना को एक दूसरे के क्षेत्र में मंजूरी लेकर घुसने की आजादी है। लेकिन भारत को डर था कि ऐसा करने पर सूचना लीक हो सकती है और आतंकी फरार हो सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि उग्रवादी संगठन के म्यांमार सेना में संपर्क हैं।

पहले भी हुए हैं ऐसे अभियान नार्थ-ईस्ट में

म्यांमार सीमा पर भारतीय सेना द्वारा उग्रवादियों के खिलाफ की गई कार्रवाई कोई नई बात नहीं है। इससे पहले भी भारतीय सेना उग्रवाद को जड़ से उखाड़ने के इरादे से म्यांमार आर्मी के साथ मिलकर ऐसे 'ऑपरेशंस' को अंजाम दे चुकी है। इन कार्रवाईयों में कुछ इसी तरह कई उग्रवादियों और उनके कैंपों का खात्मा दोनों राष्ट्र की सेनाएं पहले कर चुकी हैं।
दरअसल, भारत और म्यांमार ने अप्रैल-मई 1995 में सीमा क्षेत्र में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) साइन किया। इसके तहत एक संयुक्त मिलिट्री ऑपरेशन शुरू किया गया, जिसे नाम दिया गया 'ऑपरेशन गोल्डन बर्ड'। इस ऑपरेशन के अंतर्गत इंडियन आर्मी की 57 माउंटेन इकाई ने म्यांमार-मिजोरम बॉर्डर से मणिपुर की तरफ आ रहे मिलिटेंट ग्रुप द नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन), यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) और कामतापुर लिब्रेशन आर्गेनाईजेशन (केएलओ) के करीब 200 उग्रवादियों को सफलतापूर्वक रोक दिया था। ये उग्रवादी कॉक्स बाजार के निकट बांग्लादेश तट से हथियारों की एक बड़ी खेप लेकर आ रहे थे। इस दौरान कार्रवाई में 38 उग्रवादी मारे गए और 100 से अधिक हथियार एवं बड़ी मात्रा में गोला-बारूद पकड़े गए थे।
जनवरी 2006 में भी भारत और म्यांमार की सेना ने म्यांमार में एक संयुक्त ऑपरेशन को अंजाम देते हुए एनएससीएन (खपलांग) ग्रुप का वहां से सफाया कर दिया। इस दौरान भारत ने म्यांमार की सेना को हथियार भी मुहैया कराए। वहीं, दक्षिण भूटान में स्थित पूर्वी-उत्तर उग्रवादी गुटों को खत्म करने के लिए दिसंबर 2003 में एक सीमा पार ऑपरेशन चलाया गया। इसे 'ऑपरेशन ऑल क्लीन' नाम दिया गया। इसके तहत करीब 30 उग्रवादी कैंपों - जिनमें 13 उल्फा, 12 एनडीएफबी और 5 केएलओ शामिल थे, का सफाया किया गया। उसके बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एन सी विज ने घोषणा की थी कि इन ऑपरेशनों में करीब 650 आतंकवादियों को 'निष्प्रभावी' कर दिया गया, जिनमें ज्यादातर या तो मारे गए या पकड़े गए।

सरहद के पार कब-कब चले ऐसे ऑपरेशन

1971 : पाकिस्तान से जंग के दौरान हमारी सेना बांग्लादेश में घुसी और उसे आजाद कराया।
1987 : लिट्टे को बेअसर करने के लिए भारत ने अपने शांति रक्षा बलों के 50 हजार जवानों को श्रीलंका के जाफना में उतारा। हमारी सेना के 1200 जवान शहीद हुए। अभियान 1990 तक चला।
1988 : तख्तापलट की कोशिशें नाकाम करने के लिए मालदीव ने भारत से मदद मांगी। भारत ने सेना के 1400 कमांडो माले में उतारे। विद्रोहियों का बड़े पैमाने पर सफाया किया।
1995 : पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के कैम्प नष्ट करने के लिए सेना ने म्यांमार में प्रवेश किया। यह ऑपरेशन गोल्डन बर्ड कहलाया। 40 उग्रवादियों को मार गिराया गया।

कितने मददगार साबित हुए हैं पड़ोसी देश

म्यांमार : म्यांमार ने इससे पहले 1995 में भारतीय सेना के साथ ऑपेशन गोल्डन बर्ड चलाया था। इसके बाद 2001 में उसने भारत के कहने पर फिर ऑपरेशन चलाया। 200 उग्रवादियों को गिरफ्तार किया और 1500 हथियार बरामद किए।
भूटान : रॉयल भूटान आर्मी ने 2003 में उल्फा, एनडीएफबी और केएलओ उग्रवादियों के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया। 150 उग्रवादी मार गिराए। 3000 उग्रवादियों को अपनी सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया। उल्फा के 14, बोडो के 11 और केएलओ के 4 कैम्प नष्ट कर दिए। भूटान समय-समय पर पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के खिलाफ अभियान चलाता है।
बांग्लादेश : पूर्वी नगालैंड के उग्रवादियों के खिलाफ बांग्लादेशी सेना कार्रवाई करती है। भारत समर्थित शेख हसीना के प्रधानमंत्री होने के चलते बांग्लादेश पूर्वोत्तर के उग्रवादी तत्वों को पनाह नहीं देता।
श्रीलंका : हाल के वर्षों में सैन्य रिश्ते बिगड़े हैं। श्रीलंकाई सेना हमारे मछुआरों पर फायरिंग करती रहती है। हालांकि, पिछले वर्ष भारत को बड़ी कामयाबी मिली। दक्षिण भारत में अमेरिकी दूतावासों पर हमले की साजिश रच रहा आईएसआई का एक एजेंट कोलंबो स्थित पाकिस्तानी दूतावास में काम करता पाया गया। भारतीय खुफिया एजेंसी और सरकार के दबाव में श्रीलंका ने आईएसआई अफसर को पाकिस्तान भेज दिया।
पाकिस्तान : भारत के खिलाफ आतंक फैलाने के मामले में सबसे आगे। आतंकियों के खिलाफ भारत की कभी मदद नहीं की।
चीन : अक्साई चीन में मौजूद पाकिस्तान समर्थित आतंकियों पर कभी कार्रवाई नहीं की। पूर्वोत्तर के उग्रवादियों को भी हथियार मुहैया कराने का आरोप है।

लादेन को भी पाकिस्तान में घुसकर मारा था अमेरिका ने

अमेरिका सेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुसकर अलकायदा सरगना लादेन को मार गिराया था। लादेने अमेरिका पर हुए आतंकी हमले का सूत्रधार था। हाल ही में खबरें आई हैं कि अमेरिका ने पाकिस्तानी सरकार को इसकी जानकारी दी थी। अमेरिकी सेना यमन, सोमालिया, सीरिया जैसे कई देशों में ऐसी कार्रवाई कर चुकी है। बताया जाता है कि इजराइल की खुफिया एजेंसी विदेशी सरजमीं में घुसकर दुश्मन को खुफिया ऑपरेशन में ढेर करने या गोपनीय जानकारी जुटाने के लिए दुनिया भर में जानी जाती है। तुर्की, मिस्र, लेबनान, ईरान और कई अन्य देशों में ऐसे ऑपरेशन कर मोसाद ने हमास के कई नेताओं को ढेर किया है।







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